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और साहित्यिकतासे परिपूर्ण है। राजस्थानी संस्कृतिको आपके जीवनके समी व्यवहारों में मूत्तिमान देखा जा सकता है।
जैनत्वकी झाँकी आपके प्रत्येक व्यवहारमें साकार हो उठती है । आप मात्र साहित्य सेवी ही नही, बल्कि श्रावक गुण भूषित सच्चे जैन हैं । प्रभु दर्शन, पूजन, सामायिक, प्रतिक्रमण, स्वाध्याय, व्रत, नियम, तीर्थयात्रा आदि धार्मिक कार्य आपकी जीवन-चर्याके अभिन्न अंग हैं। आपको सैकड़ों, स्तवन सज्झाय दोहे श्लोक आदि कण्ठस्थ है। आप जब तत्लीन और भाव-विभोर होकर पूजाएँ और स्तवन सज्झायादि गाते हैं, तो श्रोतृवर्ग तन्मय हो जाता है।
आप जैन साहित्यका ही मात्र कार्य नहीं कर रहे। भारतके विभिन्न धर्मो के धार्मिक, सामाजिक, नैतिक और वीर रस पूर्ण आदि अनेक प्रकारके राजस्थानी साहित्य तथा पुरातत्त्वका अनुसंधान, संशोधन, सम्पादन और प्रकाशन भी यथासमय सुविधानुसार करते कराते रहते हैं।
आपको जैनसंघके उत्थानको लगन सदा लगी रहती है । विशाल जैनशासनमें खरतरगच्छकी परम्परा भी एक विशिष्ट स्थान रखती है। आप इसी परम्पराके अनुगामी हैं। इस पुनीत परम्पराके नाते खरतरगच्छीय साधु साध्वियोंसे भी आपका सम्पर्क बना रहता है और जब दर्शनार्थ या विशेष अवसरोंपर आते हैं, तब हमें भी आपसे हार्दिक प्रेरणाएँ मिलती रहती हैं, कि आप युगानुकल अभिभाषिकाएँ और लेखिकाएँ बनें । आत्मसाधनामें आगे बढ़ें।
आप केवल साहित्य साधक ही नहीं, आध्यात्मिक साधनामें भी अग्रसर हैं और जैन धर्मानुकल यम, नियम, आसन प्राणयाम, ध्यान आदिको प्रयोगात्मक साधना करते रहते हैं।
माननीय नाहटाजीके विषयमें जितना लिखा जाय वह थोड़ा ही है। आपका अभिनन्दन हो रहा हैं । यह जानकर मैं प्रसन्नता और गौरवका अनुभव कर रही हूँ।
श्री नाहटाका अभिनन्दन केवल उन्हींका ही अभिनन्दन नहीं, वह तो जैन संस्कृतिका जैन श्रावक समाजकी एक अद्भत प्रतिभाशाली विभूतिका अभिनन्दन है। विश्ववन्द्य भगवान् महावीर द्वारा प्रज्ञापित अहिंसा सत्य आदि तत्त्वमयी उस सनातन ऐहिक-पारलौकिक सुखशान्तिप्रद वाणीका अभिनन्दन है. जिसकी श्री नाहटा विभिन्न प्रकारसे सदा सेवा करते रहते हैं और अपने अभिभाषणों, लेखों, सम्पादनों और प्रकाशनों द्वारा जन-जन तक पहुँचा देने में तत्पर रहते हैं ।
गुणोंके प्रति सहज आकर्षण
मुनि कान्तिसागर जब मैंने प्रथम बार यह सुना कि साहित्य-सेवी श्री अगरचन्दजी नाहटाका अभिनन्दन-समारोह आयोजित किया जा रहा है तो मनमें हर्ष एवं प्रसन्नताकी लहर दौड़ गई। बड़ी खुशी हुई कि हमारी भारतीय-संस्कृतिमें विद्वानोंकी पूजाका जो क्रम अति प्राचीन कालसे चला आ रहा था, वह आज भी विद्यमान है । यह गौरवका विषय है।
श्री नाहटाजीका अधिकांश समय सरस्वतीकी उपासनामें ही व्यतीत होता है। जैन-समाजमें तो इनके जितना ज्ञानार्जनमें समय व्यतीत करनेवाला व्यक्ति दुर्लभ ही है। इस कल्पनाके लिए अवकाश ही नहीं कि
व्यक्तित्व, कृतित्व एवं संस्मरण : २२१
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