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श्री नाहटाजीका विशिष्ट व्यक्तित्व
जैनार्या सज्जन श्री बहुत-सा आगम साहित्य, देशकी विषम परिस्थितियों और अनुत्तरदायित्वपूर्ण अयोग्य व्यक्तियों के हाथोंमें रहनेसे कहीं तो दीमकोंका भक्ष्य, कहीं जल-प्लावन और कहीं अग्निदाहमें नष्ट हो चुका है। आगम साहित्यके अतिरिक्त अन्य-वृत्तियाँ, टीकाएँ, नियुक्तियाँ. चणियाँ, प्रकीर्णक एवं प्रकरणादि तथा विभिन्न विषयोंपर रचित साहित्यका भी बहुत बड़ा भाग संघकी लापरवाही या उपर्युक्त कारणोंसे नष्ट हो गया
और हो रहा है । अभी तो यह पूरा पता तक नहीं चल सका है कि हमारे ज्ञान भण्डार कहाँ थे क्योंकि अधिकांश यतिवर्ग जिसके पास यह अमूल्य निधि थी, गहस्थ बन चका है। यहाँ तक कि जैनधर्मी भी नहीं रहा है। सारे भारतमें इनके निवासार्थ समाज द्वारा निर्मित स्थान-उपाश्रय, पौषधशालाएँ आदि थे और उन्हीं में प्रायः ज्ञान भण्डार थे। इनके अयोग्य उत्तराधिकारियोंने इस सम्पत्तिकी उचित देखभाल नहीं की, जिससे सुरक्षा नहीं हो सकी । जो सुरक्षित और बहुमूल्य स्वर्णाक्षरी शैय्याक्षरी कलात्मक साहित्य सामग्री थी, उसमें से भी बहत-सी प्राचीनता प्रेमी विदेशी या स्वदेशी व्यक्तियोंके हाथों में चली गयी अब भी कुछ देश व धर्म-द्रोही धनलोलपों द्वारा पहुँच रही है। यह कटु सत्य हमें स्वीकार करना ही पड़ेगा कि कुछ व्यक्ति जो स्वयंको संघका अंग कहते हैं, वे भी इस पाप-व्यापार में सम्मिलित हैं। आये दिन होनेवाली मूर्तियोंकी चोरियाँ, इसकी साक्षी है। सौभाग्यसे संघके कुछ मनीषिजनोंका ध्यान जैन साहित्य और पुरातत्त्वकी ओर आकृष्ट हुआ और वे इसकी सुरक्षाके कार्यमें लग गये । कहीं सूचियाँ बनीं. कहीं सूव्यवस्था की गयी और कहीं प्रकाशनका पुण्य कार्य तथा संशोधनका पुनीत प्रयत्न चालू है ।
इस पवित्र अथ च अति आवश्यक कार्यमें संलग्न कई स्वनाम धन्य महानुभाव तो दिव्यलोकमें प्रस्थान कर चुके हैं और कई इस पावन कार्यमें अनवरत परिश्रम कर रहे हैं ? और सुरक्षामें लगे हुए हैं ।
उन्हीं में से दो हैं बीकानेरके सुप्रसिद्ध श्री अगरचन्दजी नाहटा महोदय, एवं इन्हींके भ्रातृज श्री भँवरलालजी नाहटा। श्री भंवरलालजी, नाहटा महोदयके अनन्य सहयोगी है।
बीकानेरमें आपका बड़ा संग्रहालय है जिसके दो विभाग हैं:-१. "अभय जैन ग्रन्थालय" २. शंकरदान नाहटा कलाभवन । ग्रन्थालयमें ८०००० ग्रन्थोंका संग्रह है। जिसमें आधे हस्तलिखित व आधे मुद्रित हैं।
कला-भवनमें प्राचीन मत्तियाँ, ३००० चित्र, सैकड़ों सिक्के और कलापूर्ण कृतियोंका विशाल संग्रह है।
लक्षाधिक हस्तलिखित ग्रन्थ प्रतियोंकी भी खोज करनेका श्रेय आपको है। चालीस वर्षसे आप इस पुनीत कार्यमें व्यस्त हैं। अधिकतर समय इसी कार्यमें व्यतीत होता है।
आपने बीकानेर स्थित ९ ज्ञान भण्डारोंकी विवरणसहित सूची तैयार की है। अनेकों ज्ञानभण्डारोंमें प्राप्त व अन्यत्र अप्राप्य एवं अज्ञात छोटी-मोटी सैकड़ों रचनाओंकी प्रतिलिपियाँ की हैं व कारवाई हैं। संशोधन-सम्पादन-प्रकाशन भी किया व कराया है।
आपका अनवरत साहित्य-सेवा कार्य वास्तवमें अनुमोदनीय, प्रशंसनीय और अनुकरणीय है।
व्यवसायी व्यक्तिका साहित्य-साधना करना कितना कठिन है। यह अनुमान सहज ही किया जा सकता है । आपका बड़ा व्यवसाय कई स्थानोंपर चल रहा है। उसे भी सँभालते रहते हैं । विश्वके साहित्यकारोंसे आपमें एक बड़ी भारी विशेषता यह है कि आपका रहन-सहन, वेश-भूषा और आहार-विहार सादगी २२० : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रंथ
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