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________________ निवास वहीं होता है, जहाँ सरस्वतीको पूजा होती है । लक्ष्मी भी हंसवाहिनीके भक्तको मानती है । बनारसीदासजी जहाँ असफल हुए, वहाँ नाहटाजी सफल रहे । नाहटाजी जीवंत संग्रहालय हैं। उन्होंने जैन साहित्य-जैनधर्म, जैन पुरातत्त्व आदिकी अनवत सेवा की है। उनकी सेवाओंका सही मूल्यांकन होना कठिन है। लेकिन इतना तो होना ही चाहिए कि उनके कार्योंकी यह परंपरा बराबर चलती रहे । एक विश्व-विद्यालयका पूरा काम उन्होंने किया है। मझे उनका सहज स्नेह मिला है। यह मेरा सद्भाग्य है । नाहटाजी समाजके भूषण आर्या सुमति . हम बीकानेर में थे। किसी ने कहा-"आप नाहटाजीसे अवश्य मिलें और उनके ज्ञानभण्डारको भी देखें।" मेरे मनमें साहित्य और साहित्यकारों के प्रति सम्मान है। मैं वहाँ गयी । नाहटाजीको देखा-वे पूर्ण राजस्थानी वेशमें थे और लगनके साथ पुस्तकों के बीच में शोध कार्य कर रहे थे। मेरे आश्चर्यका ठिकाना न रहा। यह लक्ष्मीपुत्र सरस्वती साधनामें इतनी नम्रतासे कैसे कार्य कर रहा है ? नाहटाजीने तीस हजार हस्तलिखित प्राचीन ग्रन्थ एवं प्रकाशित चालीस हजार पुस्तकें संगृहीत कर रखी हैं । हस्तलिखित पुस्तकोंका संकलन आसान नहीं है। बहुत ही कष्टसाध्य है । उत्साही नाहटाजीने उन ग्रन्थोंका संकलन किया है। उनकी इस अद्भुत कार्य-क्षमता पर गौरव होता है। केवल संकलन ही नहीं, वे स्वयं घंटों-घंटों पढ़ते भी हैं, लिखते हैं और चिन्तन करते हैं। इनके इस साधनाकी फलश्रुति है। करीब तीन हजारसे अधिक ऐतिहासिक और शोधपूर्ण लेख भारतके विभिन्न पत्र-पत्रिकाओंमें प्रकाशित हो चुके हैं। साथ ही शोधछात्रोंको मार्गदर्शन भी करते रहे हैं। . मैंने अभी दिल्ली में नाहटाजीसे कहा था-भगवान महावीरके बाद साधु-परंपराका इतिहास सुरक्षित है किन्तु चन्दनबालाकी परंपराका इतिहास प्रायः विलुप्त है। कोई किसी साध्वीका कहीं-कहीं उल्लेख मिलता है किन्तु उसे इतिहास नहीं कहा जा सकता है। उन्होंने बड़े विनोदमें कहा-लेखनी पुरुषोंके हाथमें थी। उन्होंने अपना इतिहास लिख दिया। अब आगेका इतिहास आपसे बनेगा, अतः आपलोग लीजिए। उन्होंने आगे कहा-मुझसे जो बन सकता है, मैं करूँगा। साध्वियोंका जहाँ कोई उल्लेख मिलता है, उसका संकलन करके भेजूंगा। सुधर्मा पत्रिकामें उनके इसी विषयके लेख प्रकाशित भी हुए हैं और हो रहे हैं। प्रायः देखा जाता है कि जो विद्वान् होते हैं, वे अपने आपको दूसरोंसे अलग और विशिष्ट समझते हैं । किन्तु नाहटाजी नम्र हैं, मिलनसार हैं। अध्यात्म और ध्यानके प्रति उनकी रुचि है। वे समाजके गौरव है, साहित्यकारोंमें मर्धन्य हैं और प्रतिष्ठित लेखक हैं। वे राष्टके सम्माननीय व्यक्ति हैं। हमें आशा भविष्यमें उनकी ज्ञानसाधनासे नयी दिशाएँ मिलती रहेंगी। इस महान् सरस्वती-पुत्रको दीर्घायु करें, यही शासनदेवसे मेरी प्रार्थना है। व्यक्तित्व, कृतित्व एवं संस्मरण : २१९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012007
Book TitleNahta Bandhu Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages836
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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