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________________ जैन सरस्वती भण्डारोंमें सौभाग्यसे सुरक्षित है। नाहटाजीका ग्रन्थ संग्रह इसी प्रकारका एक सरस्वती भण्डार । शीघ्र ही हिन्दीकी शोध संस्थाओंको इस सामग्रीके व्यवस्थित प्रकाशनका उत्तरदायित्व संभालना चाहिए। आशा है नाहटाजीके जीवनकालमें ही यह कार्य बहुत कुछ आगे बढ़ेगा। यह जानकर प्रसन्नता हुई कि आप अभीतक अपने संग्रहको बढ़ा रहे हैं और भविष्यमें एक पृथक् भवनमें उसको स्थापित करना चाहते हैं। इस कार्यमें उनके विद्याप्रेमी भतीजे श्री भंवरलाल नाहटा भी उनके सहयोगी हैं जिन्होंने अधिकांश कलाकी सामग्री एकत्र करने में सहायता दी है । नाहटाजी जिस मुक्त हृदयसे अपनी प्रिय सामग्रीको विद्वानोंके लिए सुलभ कर देते हैं इसका व्यक्तिगत अनुभव करके मेरा हृदय गदगद हो गया। निस्सन्देह नाहटा-संग्रह हिन्दी साहित्यकी एक अमूल्य निधि है। ईश्वर उसका संवर्धन करे । वासुदेशरण अग्रवाल सरस्वती एवं लक्ष्मीका विरल संगम मुनि श्री कन्हैयालालजी 'कमल' श्रीमान् अगरचन्दजी नाहटाका अभिनन्दन-समारोह मनाया जा रहा है, यह शुभ संवाद पाकर हृदयमें प्रमोद-भाव जग उठा । श्रीनाहटाजी उदार विचारोंके समन्वय प्रेमी विद्वान् हैं। उनकी दृष्टि ऐतिहासिक हैं, साथ ही अनेकांत प्रधान भी। एक संप्रदाय विशेषके अनुयायी होते हए भी वे सांप्रदायिक मानसके नहीं हैं, ऐसा मैंने उनके लेखों आदिसे जाना है और मुझे इसकी विशेष प्रसन्नता हुई है । श्रीनाहटाजीने जैन-साहित्य और जैन-इतिहासके सम्बन्धमें बहत ही खोज-बीन करके प्रचुर दुर्लभ सामग्री पाठकों के समक्ष प्रस्तुत की है। वे अनधित्सु और अध्ययनशील वृत्तिके हैं। एक ही साथ लक्ष्मी और सरस्वतीका संगम उनमें देखा जा सकता है। विद्या, विनय और विवेकको त्रिपुटी उनका आदर्श है और में इसे ही एक सच्चे विद्वान्की कसौटी मानता हैं। ऐसे विद्वानका अभिनन्दन वास्तवमें गुणानुरागका परिचायक है और यह सबके लिए अनुकरणीय है। सेठ और साहित्य-सेवी श्री मधुकर मुनि श्रीयुत अगरचन्दजी नाहटा एक सरस्वती-समुपासक साहित्यसेवी श्रीमन्त सेठ हैं । साहित्य-सेवा नाहटाजीके जीवनका लक्ष्य है। हमारी जानकारीमें जो भी समाचार-पत्र हैं, चाहे वे दैनिक हों अथवा साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक व त्रैमासिक हों, प्रायः उन सबमें आपके निबंध निकलते रहे हैं । अनेक पुस्तकोंका सम्पादन भी आपने किया है। मुनि श्री हजारीमल स्मृति प्रकाशनसे प्रकाशित 'ऐतिहासिक-काव्यसंग्रह'का संपादन भी आपने ही किया है। मुनिश्री हजारीमल स्मति ग्रंथकी संयोजनामें भी आपका अच्छा सहयोग रहा है। इतिहास अन्वेषणकी ओर आपकी अभिरुचि अधिक है। आपके निबंधोंमें ऐतिहासिक-अनुसंधानके तथ्य अधिक मिलते हैं। यद्यपि नाहटाजीके चरण अब वार्धक्यकी ओर बढ़ते जा रहे हैं, फिर भी आपमें युवावस्था-सी मजबूती है और कर्मठता है । अतः आप अब भी अतीव उत्साहके साथ साहित्य-सेवा करते जा रहे हैं। नाहटाजीके लिए जो अभिनंदन समारोह हो रहा है, उसके लिए शुभ कामना है । साहित्यसेवाके माध्यमसे नाहटाजी आध्यात्मिकताके चरम विकासकी ओर बढ़ते चलें। व्यक्तित्व, कृतित्व एवं संस्मरण : २११ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012007
Book TitleNahta Bandhu Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages836
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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