SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 253
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ १० ] श्री अगरचन्दजी नाहटा विख्यात शोधकर्ता विद्वान् है। उनके द्वारा संपादित सभा-श्रृंगार ग्रन्थ सांस्कृतिक शब्दावलीकी दृष्टिसे महत्त्वपूर्ण है। नाहटाजीने इस संग्रहमें विषयका विभाजन किया है । वह उनका अपना है । वर्णन संग्रहोंको यथारूप न छापकर उनमेंसे एक जैसे विषयोंका संकलन कर दिया है। हम श्री नाहटाजीके अनुगृहीत हैं कि उन्होंने परिश्रमपूर्वक इस प्रकारके साहित्यकी रक्षा की। ( भूमिका, 'सभा शृंगार' ६-४-५९) श्री अगरचंद नाहटा व भंवरलाल नाहटा राजस्थानके अतिश्रेष्ठ कर्मठ साहित्यिक हैं । एक प्रतिष्ठित व्यापारी परिवारमें उनका जन्म हुआ। स्कूल-कालेजी शिक्षासे प्रायः बचे रहे । किन्तु अपनी सहज प्रतिभाके बलपर उन्होंने साहित्यके वास्तविक क्षेत्रमें प्रवेश किया, और कुशाग्र बुद्धि एवं श्रम दोनोंकी भरपुर पूजीसे उन्होंने प्राचीन ग्रन्थोंके उद्धार और इतिहासके अध्ययनमें अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की। पिछली सहस्राब्दी में जिस भव्य और बहुमुखी जैन धार्मिक संस्कृतिका राजस्थान और पश्चिमी भारत में विकास हुआ, उसके अनेक सूत्र नाहटाजीके व्यक्तित्वमें मानो बीजरूपसे समाविष्ट हो गए हैं। उन्हींके फलस्वरूप प्राचीन ग्रन्थ भंडार, संघ, आचार्य, मंदिर, श्रावकोंके गोत्र आदि अनेक विषयोंके इतिहासमें नाहटाजी की सहज रुचि है और उस विविध सामग्रीके संकलन, अध्ययन और व्याख्या में लगे हुए अपने समयका सदुपयोग कर रहे हैं। लगभग एक सहस्र संख्यक लेख और कितने ही ग्रन्थ इन विषयों के सम्बन्धमें हिन्दीकी पत्र-पत्रिकाओंमें प्रकाशित करा चुके हैं। अभी भी मध्याह्नके सूर्यकी भांति उनके प्रखर ज्ञानकी रश्मियाँ बराबर फैल रही हैं। जहां पहले कुछ नहीं था, वहाँ अपने परिश्रमसे कण-कण जोड़कर अर्थका सुमेरु संग्रहीत कर लेना, यही कुशल व्यापारिक बुद्धिका लक्षण है। इसका प्रमाण श्री अभय जैन पुस्तकालयके रूपमें प्राप्त है। नाहटाजीने पिछले तीस वर्षों में निरन्तर प्रयत्न करते हुए लगभग पन्द्रह सहस्र हस्तलिखित प्रतियाँ वहाँ एकत्र की हैं एवं पाँच सौ के लगभग गुटकाकार प्रतियोंका संग्रह किया है । यह सामग्री राजस्थान एवं देशके साहित्यिक एवं सांस्कृतिक इतिहासके लिए अतीव मौलिक और उपयोगी है। जिस प्रकार नदी-प्रवाहमेंसे बालुका धोकर एक-एक कणके रूपमें पौपीलिक सुवर्ण प्राप्त किया जाता था, कुछ उसी प्रकारका प्रयत्न 'बीकानेर जैन लेख संग्रह' नामक प्रस्तुत ग्रन्थमें नाहटाजीने किया है। प्रस्तुत संग्रहके लेखोंसे जो ऐतिहासिक और सांस्कृतिक सामग्री प्राप्त होती है, उसका अत्यन्त प्रामाणिक और विस्तृत विवेचन विद्वान् लेखकोंने अपनी भूमिकामें किया है । बीकानेरकी यात्राका एक बड़ा आकर्षण श्री अगरचंदजी नाहटाके प्राचीन ग्रन्थोंके संग्रह और कलात्मक वस्तुओंके संग्रहको देखना था। वह अभिलाषा यहाँ आकर पूरी हुई । श्री नाहटाजीने जिस लगनसे इस संग्रहको बनाया है वह प्रशंसनीय है। संग्रहमें लगभग १५ सहस्र हस्तलिखित ग्रन्थ हैं जिनमें हिन्दी भाषा और साहित्यके आठ सौ वर्षों की अनमोल सामग्री भरी हुई है। नाहटाजीने अकेले एक संस्थाका काम पूरा किया है । आगे आनेवाली पीढ़ियाँ इसके लिए उनकी आभारी रहेंगी। जिस तत्परतासे उन्होंने संग्रहका कार्य किया है उससे भी अधिक उत्साह और परिश्रमसे आप इस सामग्रीके आधारपर लेखन और प्रकाशनका काम कर रहे हैं । अवतक वे लगभग पांच सौ लेख लिख चुके हैं जो अधिकांश उनके अपने संग्रहकी साहित्यिक सामग्रीपर आश्रित हैं । एक सहस्र वर्षों तक जैनोंने हिन्दी भाषाके भंडारको विविध कृतियोंसे सम्पन्न बनाया। वह ग्रन्थराशि गुजरात राजस्थान, संयुक्त प्रान्तके २१० : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रंथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012007
Book TitleNahta Bandhu Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages836
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy