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________________ प्रोविशियल म्यूजियम लखनऊ, दि० २८-७-४३ विज्ञशिरोमणि श्री नाहटाजी, ___ नमः । आपका १४ तारीखका कृपापत्र मिला। आपके विद्वत्तापूर्ण लेखोंको पढ़कर मुझे पहले भी आपके नामका परिचय था, परन्तु इस पत्र की प्राप्तिसे आपकी विद्यानुरागिता और सज्जनताका एक नया परिचय मिला और चित्तमें बहुत आनन्द प्राप्त हुआ। आप सचमुच अध्यवसायशील विद्वान् हैं और जैनसाहित्य तथा इतिहासकी खोजका जो बहुमल्य कार्य आप कर रहे हैं वह अद्भुत है। 'श्रीजिनप्रभसूरि' पर आपका लेख अनेक मूल्यवान् सूचनाओंसे अलंकृत है। इसी प्रकार 'सत्यासीया दुष्काल छत्तीसी' लेख भी सामाजिक इतिहासके लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। यदि आप कृपा करके अपने अन्य उपलब्ध लेखोंकी प्रतियाँ भी भेज सकें तो मैं बहुत आभारी हँगा। मैं अपने कुछ लेखोंके रिप्रिंट भेजता हूँ। आशा है आपके साथ साहित्यिक परिचय उत्तरोत्तर वृद्धि को प्राप्त होकर विशेष उपयोगी सिद्ध होगा। विनीत -वासुदेवशरण X X आपकी प्राचीन शोधविषयक प्रवृत्तिसे इस प्रकार परिचित होकर अपरिचित आनन्द हुआ। आपका कार्य विशेषतः हिन्दी भाषाका भंडार भर रहा है इस बातसे और भी अधिक परितोष है। X 'युगप्रधान श्री जिनचन्द्रसूरि' पुस्तक बहुत ही छान-बीनके बाद सच्ची ऐतिहासिक पद्धतिसे लिखी गई है। भारतीय इतिहासके अनेक भले स्रोतोंसे यह हमारा परिचय कराती है। इसमें संदेह नहीं कि अकबरकालीन जिन महात्माओंने भारतीय धर्मके सम्मानार्थ प्रयत्न किया था, उनमें जैन समाजमें श्री हरिविजय, विजयसेन, सिद्धिचन्द्र, भानुचन्द्र के अतिरिक्त युगप्रधान श्री जिनचन्द्रसूरिका भी प्रधान स्थान स्वीकृत करना पड़ेगा । अवश्य ही इनकी गणना उस युगके उदात्त मस्तिष्कोंमें की जानी चाहिए। जिस उच्च परिस्थितिमें जातीय और संप्रदायगत पक्षपाती पीछे छट जाते हैं, विशुद्ध ऐतिहासिकको उस ऊँची आसंदीसे जब अकबरीय युगका समग्र अध्ययन किया जायगा, तब जैनाचार्य सूरि महोदयों द्वारा की हुई सांस्कृतिक सेवाका पूरा महत्त्व प्रकाशमें आएगा । मैं हृदयसे चाहता हूँ कि आपके द्वारा इसी प्रकार ऐतिहासिक शोधका कार्य जारी रहे। (लखनऊ, १८-८-४३) [ ३ ] आश्विन शुक्ल ८ को एक पत्र सेवामें भेजा था जिसमें जैन-साहित्यमें प्राचीन रासोकी परंपरापर निबंध लिखने की प्रार्थना की गई थी। आशा है आपने इसे स्वीकार कर लिया है। कुछ नवीन सामग्री आपके द्वारा विक्रमांकको मिलनी चाहिए। आपका अध्ययन विशाल है और आप जब लिखते हैं खूब सारगर्भित लिखते हैं। अतएव मेरा विशेष आग्रह आप से है क्योंकि विक्रमांकके द्वारा अधिक से अधिक हिंदी जनता तक आपकी सामग्री और सूचना पहुँचाई जा सकेगी। ( लखनऊ, ५।११ कार्तिक शुक्ल ८, सं० २००० वि०) २०८ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रंथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012007
Book TitleNahta Bandhu Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages836
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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