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छा गई । पश्चात् जब मैं श्री केसरियाजी जैनगुरुकुल चित्तौड़गढ़ में गृहपतिका कार्य करता था आप भी कार्य वशात् चेदेरिया गाँवमें श्री जिनविजयजी से मिलने पधारे थे तब कुछ समय साथ रहनेका सौभाग्य प्राप्त हुआ था । इतिहासके उच्चकोटिके विद्वान् व अन्य विषयोंमें निष्णांत पारंगत शिखर स्थानीय गणमान्य व्यक्तिकी निखालसता, अपनी भाषा व भूषापर गौरवने मेरे मनपर अनोखी छाप डाली । वही बीकानेरी पगड़ी, ऊँचीऊँची दो लांगी जाड़ी धोती, ठेठ मारवाड़ी वेशका आदर्श थी । बोलचाल में आत्मनिर्भरता, आत्मसम्मानके साथ निरभिमानता की वह सोम्यमूर्ति आज भी मेरे मनमें बसी हुई है ।
पश्चात् तो मेरी प्रार्थनापर आपके कई पत्र मिलते रहे । मैं 'महात्मा संदेश' व 'महात्मा बंधु' नामक मासिक पत्र चित्तौड़ से निकालता था तब आपके लेख समयपर अवश्य मिल जाते थे । आपके लेखोंसे मुझे प्रेरणा, उत्साह व ज्ञानवर्द्धन प्राप्त होता रहा है ।
अभी भी मैं सुमेरपुरसे 'वर्द्धमान-संदेश' पत्रिका निकाल रहा हूँ उसके लिए आपका लेख कभीसे प्राप्त है । मुझे आश्चर्य है कि इस 'समय नहीं' के जमाने में आप इतना समय कहाँसे निकाल लेते हैं । हर साहित्यिक सभा में उपस्थिति व हर ऐतिहासिक ग्रंथ में आपका लेख देखकर प्रसन्नता होती है ।
उम्रकी दृष्टिसे आपमें कोई थकावट प्रतीत नहीं होती जहाँ अन्य लेखक प्रमाद सेवन करते हैं वहाँ आप सतत जागृत मिलते हैं । आपकी शोध - बुद्धि व शोध उत्कंठा जैन समाज व जैन साहित्य को बरदान सिद्ध हुई है और आगे भी होगी । आपने ऐसे कई लेख प्रशस्तियाँ व शास्त्रीय प्रमाणोपेक्षित तथ्य प्रगट किए हैं, जो कल्पनामें भी नहीं थे ।
आप जैन समाज के चमकते सितारे हैं, अमूल्य हीरे हैं एवं इतिहासके श्रेष्ठ पुजारी हैं । एक व्यक्तिका विद्वान् होनेके साथ ही उदारधनी होना कहीं नहीं पाया जाता । लक्ष्मी व सरस्वती का एक ही साथ एक ही वरराजा को वरमाला पहनाना अनहोनी बात है, परन्तु दोनों देवियाँ आपपर प्रसन्न हैं । आपने अपने पुस्तकालयमें जिन अमूल्य ग्रंथोंका संग्रह किया है उसकी कद्र चाहे आजके समाजकी दृष्टिमें न हो परन्तु भावी समाज इसका मूल्यांकन करेगा ।
आपकी प्रेरणा से कई विद्यार्थी आगे बढ़े हैं, कितनोंको चेतना मिली है। बीकानेरका ही नहीं, वरन पूरे भारतवर्षका जैन समाज आपके सुकृत्योंका ऋणी है ।
शासनदेव आपको चिरायु व सशक्त रखे ताकि आपके द्वारा देश, धर्म व समाजकी सेवा निरंतर होती रहे । आपका व्यक्तिगत धर्मस्नेह मुझपर है उसमें वृद्धि होती रहे, यही अपेक्षा है ।
नाहटाजी : स्व० डॉ० वासुदेवशरण अग्रवालकी दृष्टि में
डॉ० सत्यनारायण स्वामी
स्व० डा० वासुदेवशरण अग्रवाल श्रद्धेय नाहटाजी के अभिन्न और आदरणीय मित्र थे। दोनों दूध और पानी की तरह परस्पर घुल-मिलकर एक थे । उनकी विद्यमानतामें यदि प्रस्तुत ग्रंथ निकलता तो, कोई आश्चर्य नहीं, वे ही इसके प्रमुख सूत्रधार होते। दोनोंकी विद्वत्ता और महानता तो असंदिग्ध है ही, यहाँ मात्र उनके अनवद्य स्नेह को अंकित करने का विनम्र प्रयास किया जा रहा है। संगृहीत उद्धरण नाहटाजीको लिखे डाक्टर साहबके पत्रोंसे और उन्हींकी लिखी नाहटाजीके ग्रंथोंकी भूमिकाओंसे लिये गये हैं ।
व्यक्तित्व, कृतित्व एवं संस्मरण : २०७
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