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________________ श्री सम्मेद शिखरजी में संपन्न स्याद्वाद महाविद्यालयके स्वर्ण जयन्ती महोत्सवके समय सभामें बहत ऊँची पगड़ी बांधकर बैठे हए चिन्ता निमग्न एक व्यक्तिको देखकर मैंने पं० कैलाशचन्दजीसे पूछा कि इन महाशयकी पगड़ी तो सबसे निराली दिखती है ? कौन हैं यह? पण्डितजो ने उत्तर दिया-आप नहीं जानते ? यह बीकानेरके अगरचन्दजी नाहटा हैं। पण्डितजोके द्वारा आपका परिचय प्राप्त कर मैं नाहटाजीके पास खिसक गया जिससे प्रत्यक्ष परिचयकी अभिलाषा हम दोनोंकी पूर्ण हुई। पत्राचारका परिचय तो बहुत पहलेसे था, परन्तु प्रत्यक्ष परिचयका अवसर उसी समय प्राप्त हुआ था । इस साहित्य महारथीके प्रति मेरे हृदयमें बहुत श्रद्धा है। अभिनन्दनकी वेलामें मैं आपके दीर्घायुष्य होनेकी मङ्गलकामना करता हूँ। अभिनन्दनीय नाहटाजी भंवरमल सिंघी भाई अगरचन्दजी नाहटाने साहित्य और इतिहासके क्षेत्रमें जो शोधकार्य किया है, जो सामग्री अपने संपादन और लेखनके द्वारा दी है, वह बहुमूल्य है और बहुमूल्य रहेगी। जिस संकल्पसे, निष्ठासे और श्रमसाधनासे उन्होंने आजीवन साहित्य-सेवा की है, वह अनुकरणीय है। परन्तु क्या सहज ही उनका अनुकरण किया जा सकता है? जिस समाजमें अर्थ ही अनुकरणीय है, वहाँ विद्या-साधनामें लगे रह जीवनको सफल बनाना बड़ा कठिन कार्य है । वह कठिन है, इसीलिए अभिनन्दनीय है। भाई अगरचन्दजी को मैं २५-३० वर्षों से जानता हूँ और उनकी मूक साहित्य-साधनाका प्रशंसकरहा है। भाई भंवरलालजी नाहटाने भी इस कार्यमें अगरचन्दजीको जो सहयोग दिया है, वह भी अति मल्यवान है । अतः अभिनन्दन भी दोनोंका साथ-साथ हो, यह उचित ही है। इन दोनोंके सतत प्रयत्नोंके बिना बहत सी दुर्लभ ऐतिहासिक सामग्री अंधेरेमें ही पड़ी रह जाती । दोनोंके अनेक-अनेक अभिनन्दन सहित इतिहासके श्रेष्ठ पुजारी फतहचन्द श्रीलालजी जब मैं बालकथा और श्री आत्मानन्द जैन गुरुकुल गुजरानवालामें पढ़ता था तबसे ही आपके प्रति मेरी श्रद्धा थी। अनेक पत्र-पत्रिकाओंमें आपके लेख आते थे। आपका नाम तो मेरे मस्तिष्कमें अप कर बैठा ही था परन्तु साक्षात्कार नहीं हुआ था। जब आचार्य श्री विजयवल्लभसूरीश्वरजी महाराज साहबका चातुर्मास बीकानेरमें रामपुरिया भवनमें हुआ उस वक्त मैं आचार्यश्रीका इतिहास लिखता था, आपके प्रिय शिष्य श्रीसमुद्रविजयसूरीश्वरजी व विशुद्धविजयजी महाराजकी उर्दूकी डायरियोंका हिन्दी में अनुवाद करता था तथा मुनिराजश्री विशारदविजयजी को पढ़ाता भी था । नाहटा जीसे साक्षात्कार हुआ। आपका विस्तृत सरस्वती मंदिर भी देखा । आपके भतीजे श्री भवरलालजी भी उत्साहप्रद निकले। नाहटा साहबकी सरलता, ज्ञानपिपासा, शांतचित्तता, सरलता मेरे मनपर २०६ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रंथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012007
Book TitleNahta Bandhu Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages836
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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