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________________ अन्तराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त विद्वान् श्री माणिकचन्द्र नाहर एम० ए० अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त भाषा एवं शिक्षा शास्त्री, कुशल एवं अधिकृत धार्मिक मनीषी, वरेण्य विद्वान् तथा मूर्धन्य निबंधकार श्री अगरचंदजी नाहटाका आप अभिनंदन समारोह आयोजित कर रहे हैं, यह राष्ट्रीय महत्त्वका कार्य अत्यंत ही गौरवका है। नाहटाजी दीर्घायु हों, समारोह सफल हो, ग्रंथ उनका कीर्ति स्तंभ होइसी शुभकामना के साथ अभीक्ष्णज्ञानोपयोगी के प्रति श्रद्धा-सुमनाञ्जलि पं० परमेष्ठीदास जैन विद्वद् " श्री अगरचन्द्रजी नाहटासे मेरा परिचय विगत ४० वर्ष से है । अपने सम्पादनकाल में मैंने जैनमित्र और वीरपत्रमें उनके दर्जनों लेख सगौरव प्रकाशित किये हैं । जिस अंकमें श्री नाहटाजीका लेख छपता वह अंक सहज ही महत्त्वपूर्ण बन जाता था । जहाँ तक मेरा ध्यान है, समूचे जैन समाज में इतनी अधिक विपुल मात्रा में लिखनेवाला दूसरा कोई व्यक्ति नहीं है । T उन्होंने जीवनभर निष्कामभावसे जो साहित्य सेवा की है, वह सदैव स्मरणीय रहेगी । श्री नाहटाजी का मेरे प्रति विशेष स्नेहभाव रहा है । यही कारण है कि वे गत वर्ष हैदराबादसे देहली जाते हुए विना किसी पूर्व सूचनाके ही ललितपुर स्टेशनपर उतर गये और सीधे मेरे प्रेस पर आ पहुँचे । उनके इस आकस्मिक मिलन और स्नेह के कारण मुझे अवक्तव्य आनन्दानुभव हुआ । अपने विशिष्ट वेश-भूषादिमें वे केवल शुद्ध व्यापारी सेठ मालूम होते हैं । किन्तु जब मैंने अपने मित्रोंको बतलाया कि श्रीनाहटाजी कितने महान् साहित्य - कार विद्वान् हैं तो वे लोग आश्चर्यचकित रह गए । यद्यपि श्री नाहटाजी मेरे घर कुछ ही घंटे ठहरे थे किन्तु किसी भी प्रकारका आराम किये बिना मेरे घरमें संग्रहीत पुस्तकें पढ़ते रहे। ऐसा अभीक्ष्णज्ञानोपयोगी गृहस्थ मैंने सर नहीं देखा । उनके इस अभिनन्दन समारोह के मंगल प्रसंगपर मैं भी अपने हार्दिक श्रद्धा-सुमन समर्पित करता हूँ । व्यक्तित्व महान् पं० बालचन्द्र शास्त्री श्री अगरचन्द्रजी नाटाका अभिनन्दन किया जा रहा है, यह जानकर विशेष प्रसन्नता होती है । गुणीजनका यथोचित सम्मान होना ही चाहिये । यह सम्मान कर्ताकी ज्ञानवृद्धिका भी कारण है । नाहटाजी का व्यक्तित्व महान् है । सम्पन्न होकर भी वे सरस्वतीके उपासक है । उनकी साहित्यसेवा स्तुत्य है । शायद ही ऐसा कोई पत्र या पत्रिका होगी, जिसमें नाहटाजीका निबन्ध दृष्टिगोचर न हो । उनके निजी पुस्तका - लयमें अनेक विषयोंके मुद्रित और हस्तलिखित ग्रन्थोंका विशाल संग्रह है । इतना विशाल संग्रह तो अनेक सार्वजनिक पुस्तकालयों में भी नहीं देखा जाता । सरस्वती और लक्ष्मीमें जो स्वाभाविक विरोध प्रसिद्ध है, उसके नाहटाजी अपवाद हैं । हमारी हार्दिक कामना है कि नाहटाजी चिरजीवी होकर इसी प्रकारसे धर्म व साहित्यकी पुनीत सेवा करते रहें । २०४ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रंथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012007
Book TitleNahta Bandhu Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages836
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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