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________________ हुआ है, उतना कदाचित् अन्य साहित्य सेवियों द्वारा नहीं। संपादन, लेखन और शोधकार्यों में अविरल लगे रहनेपर भी आप सामाजिक और सार्वजनिक सेवाओं में अग्रिम योग-दान देते रहते हैं। सिद्धान्ताचार्य, विद्यावारिधि, संघ-रत्न आदि अनेक लौकिक उपाधियाँ आपकी विद्वत्ताके चरणोंमें लोटती हैं, परन्तु इनकी उपलब्धिके लिए आपने कभी महत्त्वाकांक्षी होकर तपस्यायें नहीं की प्रत्युत वे तो आपके सतत स्वाध्याय प्रेमके कारण ही ऋद्धि-सिद्धियोंकी भाँति आपकी दासियाँ बनने चली आई। - लक्ष्मी और सरस्वतीको ३६ के अंकोंमें खेलते तो सर्वत्र ही सबने देखा-परखा है परन्तु ६३ के अंकमें क्रीड़ा करती हुई ये युगल देवियाँ श्री अगरचन्दजी नाहटाके आँगनमें ही देखी जा सकती है। आपकी सतत साहित्य-साधना, शोध-कार्य एवं अविरल स्वाध्याय प्रेमने जिनवाणीके मन्दिरमें श्रतदेवता की ऐसी मनोरम मूर्ति विराजमान की है, जिसके दर्शन मात्रसे दिगम्बर और श्वेताम्बरका वैषम्य स्वयमेव काफूर हो जाता है । पंथ व्यामोह को तो आप विषधर-दंशित बेहोशी मानते हैं। महाप्रभाविक बृहत् सचित्र अमर भक्तामर आदि पंच स्तोत्रोंके सम्बन्धमें मेरा पत्र-व्यवहार बहुधा आपसे होता रहता है, उचित निर्देशनों, ऐतिह्य सुझावों, पुरातत्त्वीय प्रेषणों ( सामग्रियों ), हस्तलिखित ग्रन्थोंके माध्यमसे आपके द्वारा जो साहाय्य व सहयोग मुझे मिलता रहता है, उसे कभी भी विस्मृत नहीं किया जा सकता । मैं क्या, बल्कि सभी शोधस्नातक रूपी एकलव्योंके लिए तो आप परोक्ष द्रोणाचार्य ही है, देखें, मेरा सौभाग्य कब आपके साक्षात्कार पूर्ण अभिनन्दनके लिए जाग्रत् होता है। अनोखी प्रतिभाके धनी __ श्री अमृतलाल शास्त्री श्रद्धेय नाहटाजीने अपनी ज्ञान पिपासाको शान्त करनेके लिए व अनुसन्धानको साधार बनानेके लिए अपने द्रव्यसे बीकानेरमें दो महत्त्वपूर्ण संस्थाओंकी संस्थापना की है-(१) अपने बड़े भाई स्व० अभयराजजी की स्मृतिमें श्री-अभय जैन ग्रन्थालय, जिसमें ४० हजार हस्तलिखित दुर्लभ ग्रन्थोंका और ४० हजार महत्त्वपूर्ण प्रकाशित ग्रन्थोंका अपूर्व संग्रह है, तथा (२) अपने पूज्य पिता स्व० सेठ शङ्करदानजीकी संस्मृतिमें श्री शङ्करवान नाहटा कलाभवन, जिसमें ३०० प्राचीन चित्र, सैकड़ों सिक्के, प्राचीन प्रतिमाएँ और विविध कलाकृतियां संगृहीत हैं। इन दोनों संस्थाओंके साथ राजस्थानी साहित्य परिषद्का भी संचालन नाहटाजी स्वयं कर रहे हैं। संचालनके अतिरिक्त आपने अभयजैन ग्रन्थमालासे २५ एवं राजस्थानी साहित्य परिषद्से ९ विशिष्ट ग्रन्थोंका प्रकाशन भी किया है। अन्य संस्थाओंको सक्रिय सहयोग-वृहत्खरतरगच्छ जैन ज्ञान भण्डारको जिसकी देख-रेख भी आप करते हैं. १० हजार हस्तलिखित प्राचीन प्रतियोंकी विषयवार सूची अपने हाथसे तैयार की। इसी तरह बीकानेरके श्रीजिनदत्त सूरि ज्ञान भण्डार एवं उपा० जयचन्द्र ज्ञान भण्डारके १० हजारसे भी अधिक प्राचीन ग्रन्थोंकी सूची बनाने में स्वयं परिश्रम किया है। इस तरह तीनों संस्थाओंको नाहटाजीने सक्रिय सहयोग दिया है। संस्मरणीय सेवाएँ-(१) श्री सादुल राजस्थानी रिसर्च इन्स्टीट्यूट बीकानेरमें लगातार कई वर्षोतक निदेशकका पद संभालना, (२) महानिबन्ध (थीसिस) लिखनेवाले सैकड़ों अनुसन्धाताओंको मार्गदर्शन कराना, व्यक्तित्व, कृतित्व एवं संस्मरण : १९७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012007
Book TitleNahta Bandhu Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages836
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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