SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 238
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उत्साही युवकों का अध्ययन एवं लेखनकी प्रेरणा देते रहते हैं । राजस्थानी साहित्य, अपभ्रंश एवं प्राकृत ग्रंथोंके पुनरुद्धारका जो कार्य उनके द्वारा हुआ है, उसके लिए साहित्य जगत् सदा उनका आभारी रहेगा । जैन समाज में एकता, समन्वय एवं प्रेमके लिए उनकी आन्तरिक तड़प है। इसके लिए वे समय-समय पर लेख, भाषण और चर्चाओंके माध्यम से अपने विचार व्यक्त करते रहते हैं । केवल विचारों तक ही वे सीमित न रहकर क्रियात्मक रूपमें भी सदा आगे रहते हैं । यही कारण है कि चारों सम्प्रदायोंके जैन आचार्यों साधु-साध्वियों एवं श्रावक - समाजमें वे समान रूपसे प्रिय हैं । श्री नाहटाजी सामान्य शिक्षा प्राप्त उस वणिक् समाजके व्यक्ति हैं, जिसके लिए कहा जाता है कि उसके पास लक्ष्मी तो होती है किन्तु सरस्वती नहीं होती । नाहटाजीने इस उक्तिको वर्तमान समय में भी गलत सिद्ध कर दिया है। हाँ, नाहटाजीकी लिखावटको पढ़नेके लिए प्रयत्न करना पड़ता है और साधारणतः उसे पढ़ पाना कठिन ही होता है, परन्तु उनके विचार बहुत ही मूल्यवान होते हैं । स्वभावसे सरल, मिलनसार और नम्र । व्यवहार में कहीं भी अहंकारका समावेश नहीं और न पांडित्यका प्रदर्शन ही । धोती-कुर्ते का पहनावा, गलेमें चादर और सिर पर राजस्थानी बीकानेरी पगड़ी । एक सामान्य मनुष्यकी भाँति इस सहज और स्वाभाविक रूपमें छोटे-बड़े समारोहोंसे लेकर दैनिक कार्यक्रम में वे उपस्थित रहते हैं । जीवनमें त्याग - वैराग्यका भी समावेश है । किसी प्रकारका कोई व्यसन नहीं और न प्रमाद ही । सतत ज्ञानकी पिपासा एवं जिज्ञासुभाव दूसरोंके लिए अत्यन्त प्रेरणाप्रद हैं । यह अभिनन्दन समारोह उनका नहीं बल्कि उनकी साधना, सेवा और सात्त्विक वृत्तियोंका है । वे इसे पसन्द नहीं भी करें किन्तु उनके मित्रों, शुभेच्छुओं एवं गुणग्राहकोंका यह कर्तव्य हो जाता है कि वे अपनी भावना व्यक्त करें । आवश्यकता इस बात की है कि ऐसे समारोह केवल परम्परागत या प्रदर्शन भावनाके लिए न करते हुए प्रेरक बनें, इसका प्रयास किया जाय । अभिनन्दन समारोह के अवसरपर मित्रवर श्री नाहटाजीके प्रति अपनी मंगल कामना व्यक्त करता हुआ मैं ईश्वरसे प्रार्थना करता हूँ कि वे दीर्घायु होकर साहित्य, समाज एवं राष्ट्रकी सेवामें अधिक से अधिक योगदान करते रहें । मित्रवर अगरचन्द जी नाहटा श्री वृन्दावनदासजी बी० ए०, एल० एल० बी० मित्रवर अगरचन्दजी नाहटासे मेरा व्यक्तिगत और साहित्यिक परिचय है । व्यक्तिगत परिचय तो अभी कुछ ही वर्षों का है परन्तु साहित्यिक परिचय बड़ा पुराना है । मैं अपने बाल्यकाल से ही अनेक पत्रपत्रिकाओं में नाहटाजी के लेख पढ़ता रहता था । ऊँचेसे ऊँचे स्तरकी पत्रिका हो अथवा सामान्य स्तरकी छोटीमोटी, नाहटाजी का शोधपूर्ण लेख उन सब में अवश्य ही दिखाई दे जाता था । इसलिये कुछ पहले तक मैं नाहाजी को अपने से बड़ी उम्रका साहित्यिक समझता था परन्तु तीन-चार वर्ष पहले जब अनायास ही एक बार नाहटाजीने मेरे निवास स्थानपर पधारकर दर्शन दिये, तब मेरे आश्चर्यका ठिकाना न रहा । मुझे उसी दिन ज्ञात हुआ कि नाहटाजी तो मुझसे ४, ५ वर्ष छोटे हैं । इस प्रसंगसे यह सिद्ध है कि नाहटाजीने व्यक्तित्व, कृतित्व एवं संस्मरण : १९५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012007
Book TitleNahta Bandhu Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages836
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy