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________________ सुलेखक, युगनिर्माता एवं चिन्तक शताब्दियोंमें ही किसी देश, समाज या राष्ट्रको प्राप्त होते हैं। मैं इस अभिनन्दन समारोह के अवसरपर उनके दीर्घायुष्य, स्वास्थ्य एवं यशके लिए मंगल कामना करता हूँ । वे अपने इस उत्तरार्ध जीवनमें अपनी साहित्य-साधना द्वारा वाङ्मयकी अभिवृद्धि करते रहें, यही हार्दिक अभिलाषा है । मैं इस साहित्य - तपस्वीको अपनी श्रद्धा-भक्ति समर्पित करता हूँ । कर्मयोगी श्री नाहटाजी श्री रिषभदास का व्यक्तिका मूल्यांकन प्रत्येक व्यक्ति अपनी-अपनी कसौटीके अनुसार करता है । सबके पास अपने-अपने गज हैं, जिनके द्वारा वे दूसरोंके व्यक्तित्व को माँपते और आँकते हैं । किन्तु कुछ ऐसे व्यक्तित्व भी होते हैं, जिनका मूल्यांकन किसी निश्चित मापदण्ड या गजके द्वारा नहीं होता, वरन् उनका व्यक्तित्व एवं कृतित्व स्वयं ही अपनी छाप दूसरोंपर छोड़ देता है । श्रीनाहटाजी ऐसे व्यक्तित्व के धनी हैं, जिनकी साहित्य साधना एवं निरन्तर कर्मशील जीवन ही उनका परिचय है । उनका जन्म राजस्थानके व्यवसायी परिवार में हुआ । पैतृक परम्परा के अनुसार व्यवसाय के प्रति उनका दायित्व था और उस दायित्वको आज भी वे वर्ष में महीनोंका समय लगाकर कुशलतासे निभाते हैं । लेकिन उनका मन एवं हृदय एक ऐसी जिज्ञासा एवं शोधवृत्ति से ओत-प्रोत हैं कि वे उसे अपने जीवनका मुख्य ध्येय मानकर उसमें रचे- पचे हुए हैं । साधारण स्कूली शिक्षा प्राप्त एक व्यापारीके पास पी-एच० डी० की डिग्री पानेवाले विद्वान् व्यक्ति विद्यार्थीको भांति ज्ञानार्जन करते हुए देखकर सहसा किसीको भी आश्चर्य हो सकता है लेकिन जिसने उनका सामीप्य प्राप्त किया है, वे जानते हैं कि भले ही उनके पास कोई डिग्री न हो किन्तु उनका ज्ञानभंडार विशाल है । प्राचीन हस्तलिखित हजारों ग्रंथोंका उद्धार एवं नित्य नई-नई शोधके द्वारा श्री अगरचंदजी नाहटाने अन्वेषण के इतिहासमें जो योगदान किया और कर रहे हैं, वह वस्तुतः आश्चर्यजनक एवं स्तुत्य है । अपने विशाल पुस्तकालय एवं संग्रहालय द्वारा देश-विदेशके विद्वानोंको नई रोशनी देनेवाले श्रीनाहटाजी अत्यन्त परिश्रमी, स्वाध्यायी एवं कर्मयोगी हैं । उनकी पत्नीका देहावसान हुए कुछ ही दिन बीते थे । मैं बीकानेर उनसे मिलने गया तो देखा चारों तरफ पुस्तकोंका ढेर लगाये अत्यन्त तन्मयतासे श्रीनाहटाजी कर्मयोगीकी तरह अपना अध्ययन कर रहे हैं । उनके कार्य में कहीं भी गतिरोध नहीं था और न मनपर उस दुःखद घटनाका कोई प्रभाव ही । ऐसी स्थिति एक सच्चे साधक की होती है भले ही उसका साधना क्षेत्र अध्यात्म हो या साहित्य । श्री नाहटाजीके साथ वर्षोंके आत्मीय सम्बन्धमें मैंने उनकी एक बहुत बड़ी विशेषता यह भी पाई कि वे साम्प्रदायिकता के रोगसे ग्रसित नहीं हैं । जहाँ कहीं भी अच्छी बात नजर आती है, वे उसका हृदयसे समर्थन करते हैं और जो बात उनको उचित नहीं लगती उसके लिए स्पष्टता एवं निर्भयतापूर्वक अपने विचार व्यक्त करते हैं । इस प्रकारके कई प्रसंग उनके साथ आये लेकिन उनका सत्यके प्रति आग्रह कभी नहीं टूटा । स्वयं साहित्यके क्षेत्रमें अथवा शोधकार्य में संलग्न रहते हुए दूसरों को प्रेरित एवं उत्साहित करना उनकी विशेषता है । छोटी-छोटी पत्र-पत्रिकाओंमें भी वे अपने लेख और विचार भेजते रहते हैं और नये १९४ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन ग्रंथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012007
Book TitleNahta Bandhu Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages836
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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