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अर्थ शरीर है, संस्कृत भाषा मुख है, प्राकृत भाषाएँ भुजाएं हैं। अपभ्रंश भाषा जंघा है, राजस्थानी, गुजराती आदि भाषाएँ वक्षस्थल हैं, विश्लेषण-क्षमता, चिन्तन-प्रक्रिया, प्रतिपादन-शैली वाणी है । इस प्रकार यह वाङ्मय पुरुष सरस्वती का ज्येष्ठ पुत्र है और इसे उनका पूरा प्यार और दुलार प्राप्त है।
इस वाङ्मय पुरुषको कीत्ति अक्षुण्ण है । यह प्रतिभाका धनी है, स्वयं वुद्ध गुरु है और है उच्चकोटिका साधन । कर्मठतः, लगन, त्याग और निःस्वार्थ भावने इस वाङ्मय पुरुषको इतनी दिव्यता प्रदान की है, जिससे यह स्वयं बुद्ध गुरुके रूपमें ख्यात है। इस २०वीं शताब्दीमें जैन-साहित्यकी रक्षा, सेवा और प्रगतिमें दिया गया नाहटाजीका योगदान स्वर्णाक्षरों में अंकित रहेगा। हिन्दी-साहित्यका प्रत्येक शोधार्थी इनकी ज्ञान भागीरथीकी शीतलतासे परिचित है। श्री नाहटाजीके व्यक्तित्वकी दो प्रमुख दिशाएँ हैं-अध्ययन और साहित्य-सृजन । अध्ययन बलसे संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश आदि विभिन्न भाषाओं और उनके साहित्योंका
लस्पर्शी पांडित्य प्राप्त किया है। अपर्व क्षयोपशमके साथ निरन्तर श्रम-साधना द्वारा ज्ञानार्जन और ज्ञान वितरण दोनों ही कार्य व्यक्तिके रूप में नहीं किन्तु संस्थाके रूपमें मान्य है। नाहटाजी न तो राजनीतिक नेता हैं और न धर्मनेता ही । वे ऐसे साहित्यके स्रष्टा है, जो तटस्थ दृष्टिसे नयी स्थापनाओं और उद्भावनाओं द्वारा नये प्रतिमान स्थापित कर रहे हैं। ये सर्वथा न प्राचीनताके समुत्थापक हैं और न सर्वथा अर्वाचीनता के सम्पोषक हैं। सत्य और औचित्य ही इनके लिये जीवनके सच्चे प्रतिमान है।
साहित्य स्रष्टाके रूपमें नाहटाजी युग-युगान्तर तक आलोकित रहेंगे । इनकी मौलिक प्रतिभा प्रत्येक निबन्धमें झाँकती है । जिस विषयको ये ग्रहण करते हैं, उसके ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दोनों ही पक्षोंको पूर्णतया उपस्थित करनेका प्रयास करते हैं।
ग्रंथ-निर्माण और सम्पादनके अतिरिक्त नाहटाजीने बीकानेरके ग्रन्थागारोंकी सूचियां तैयार करके शोधार्थियोंके लिये महनीय प्रभूत सामग्री प्रस्तुत की है। आप संस्था होनेके साथ विश्वकोष भी हैं। किसी भी विषयकी जानकारी आपसे प्राप्त की जा सकती है । किस प्राचीन लेखककी कौनसी कृति किस ग्रन्थभण्डारमें है, इसका परिज्ञान नाहटाजीको निर्धान्ति रूपसे है। राजस्थानमें हस्तलिखित ग्रन्थोंकी खोज और शोध सम्बन्धी कार्य भी आपके द्वारा सम्पन्न हुए हैं। इन शोध खोजोंका विवरण ग्रन्थ रूपमें प्रकाशित है।
नाहटाजीका व्यक्तित्व नारिकेल सम है। वे साहित्यिक दायित्व निर्वाहके लिए कड़ीसे कड़ी आलोचना कर सकते हैं। साहित्यकारोंकी कृतियाँमें त्रुटियाँ निकालना उनका स्वभाव है, पर नये साहित्यकारोंको उत्साहित करनेमें वे कभी पीछे नहीं रहते। उनके साहित्यिक व्यक्तित्वमें जो कठोरता है, वह स्वभावजन्य नहीं, सिद्धान्तजन्य है । स्वभाव तो उनका नवनीतसे भी अधिक कोमल है। सत्य तो यह है कि उनका व्यक्तित्व एक कर्मयोगी का है । सिद्धान्तकी रक्षाके लिए नाहटाजी कठोर भी बन सकते हैं, पर यथार्थतः वे सभीका उत्थान और मंगल चाहते हैं । जो भी उनके सम्पर्क में आया, वह उनका प्रशंसक ही बन गया है। मेरी दृष्टिमें नाहटाजीके व्यक्तित्वमें हिमालय जैसी उत्तुङ्गता और विराटता समाहित है। हिमालयकी हिमधवल गगनस्पर्शी चोटियोंका जब-जब स्मरण आता है, हृदय श्रद्धासे नगराजके प्रति नत हो उठता है। हिमालयकी करुणा जब अगणित निर्झरों और सरिताओंके रूपमें विगलित होती है, तो देशकी बंजरभूमि भी शस्त्रोंकी उर्वर जननी बन बैठती है। हिमालय उत्तर दिशामें जाने कितनी दूर अपनी विराटताको लेकर खड़ा है।
____ नाहटाजीकी गणना भारतके उन मनीषियोंमें सम्मिलित है, जिनके त्याग एवं सेवाओंके गारेसे किसी भी देश या समाजका गौरवपूर्ण इतिहास निर्मित होता है । नाहटाजी जैसा मेधावी विद्वान्, कर्मठ, सत्यशोधक,
व्यक्तित्व, कृतित्व एवं संस्मरण : १९३
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