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________________ लौटते समय रात्रिमें स्टेशनपर जिस रसमय वातावरणकी सृष्टि हुई, उसमें राजस्थानी काव्यधाराका आनन्द बिखेरनेका कार्य श्री नाहटाजीने ही किया था। आपको किसी साहित्यिक ग्रन्थके बारेमें संशय हो अथवा निर्णयके लिए प्रामाणिक नाम-धामादि जानने हों तो एक पत्र बीकानेर भेजिये और सप्रमाण जानकारी प्राप्त कीजिये। यह कार्य श्री अगरचन्दजी नाहटा-जो कि एक 'जंगमकोष' स्वरूप है-तत्काल बड़ी उदारतासे करते हैं। उनके पास विशाल संग्रह है उन पुस्तकों और पाण्डलिपियोंका. जिन्हें श्री नाहटाजो वर्षोंसे परिपुष्ट करते आये हैं । वास्तवमें उनके द्वारा उपाजित धनका सदुपयोग वे माँ शारदाकी ऐसी ही सेवाओंमें करते आये है । (संस्कृत विश्वविद्यालय में आमन्त्रित सम्मेलनमें भी, श्री नाहटाजीका साथ मिला)। गत वर्ष बम्बईमें श्रीमानतुंगसूरि सारस्वत समारोहके मंचपर इन पंक्तियोंका लेखक और श्री अगर चन्दजी नाहटा एक साथ ही पद्मभूषण, श्री डी० एस० कोठारीके करकमलोंसे सम्मानित हुए थे। जब मैं उन्हैल-उज्जैनमें अध्यापक था, तब वे उन्हैल भी पधारे थे। उन सब क्षणोंका सुखद स्मरण श्री नाहटाजीके प्रेरणाप्रद व्यक्तित्वका अनूठा उदाहरण प्रस्तुत करता है। इस अवसरपर मैं इन दोनोंकी उत्तरोत्तर साहित्यश्रीकी अभिवृद्धिके साथ सुदीर्घ और सुखमय जीवनकी कामना करता हूँ। जंगम तीर्थ : श्री अगरचन्द नाहटा डॉ० आनन्दप्रकाश दीक्षित 'अगरचन्द नाहटा' लेखकोंमें एक ऐसा नाम है, जिसे जाने बिना हिन्दी साहित्यका ज्ञान अधूरा रहता है। धोती, लम्बा कोट पहने और राजस्थानी पगड़ी धारण किये किसी व्यक्तिको अकस्मात् कहीं देखने पर नहीं लगता कि हम किसी विशिष्ट व्यक्तिको देख रहे हैं, किसी विशिष्ट साहित्यकारके सामने हैं; किन्तु परिचय प्राप्त करनेपर सहसा सुखद आश्चर्यको अनभति से नहीं बचा जा सकता । ओह ! यह हैं नाहटाजी जिनकी लेखनी अविराम गतिसे अज्ञात, अल्पज्ञात अथवा सुज्ञात साहित्यका परिचय, विवेचन और विश्लेषण कराती हुई साहित्येतिहास और आलोचनाको समृद्ध बना रही है। सादे लिबासमें लिपटा हुआ यह व्यक्ति अपने स्वभावकी सादगी, सरलता और भद्रताका ही प्रभाव अंकित नहीं करता, अपने विपुल ज्ञानसे आतंकित भी करता है। नाहटाजीके पास ग्रंथ-राशिकी ऐसी विपुलता है, शोधके प्रति उनमें ऐसी लगन है और विभिन्न स्रोतोंकी कुछ ऐसी जानकारी है कि सामान्यतः उसके दर्शन अन्यत्र संभव नहीं हैं। हिन्दीके कितने पर्वतः अज्ञात ग्रंथों और उनके लेखकोंकी विस्तृत जानकारी नाहटाजीने साहित्य-संसारको दी है, इसका स्वयं अपना अलग ही एक इतिहास है। कितने अलभ्य ग्रंथोंका संपादन उन्होंने किया है, इसकी तालिका उनके ज्ञानकी विस्ततिकी परिचायक है । कितनी पत्रिकाओंके वे संपादक हैं और कितनी शोधपरक एवं सामान्य पत्रिकाओं में वे निरन्तर लिखते हैं, इसका ज्ञान अभिभूत किये बिना नहीं रहता। हिन्दीकी बहुत कम पत्रिकायें होंगी, जिनमें श्री नाहटाने कुछ न लिखा हो और प्राचीन साहित्यका शायद ही कोई अनुसंधाता हो जिसके लिए नाहटाजी एक सहारा न बन गये हों। और यह सब तब है जबकि वे अपने व्यवसायकी व्यवस्था भी स्वयं बनाये रहते हैं। १७२: अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रंथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012007
Book TitleNahta Bandhu Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages836
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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