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________________ इस दुरूह राहपर चलकर नाहटाजी ने जो-जो मंजिलें तय की हैं, उसका स्वयं एक इतिहास है । कभी-कभी उन्हें देखता हूँ तो ऐसा लगता है, कि ये गुपचुप रहनेवाले बुद्धि में कितने विराट हैं ? " न भूतो न भविष्यति' की कहावतको चरितार्थ करनेवाले ये राजस्थानके रत्न साहित्य के प्रांगण में सदा जगमगाते रहेंगे । सीधे और दिनके प्रकाशमें सफर करनेवाले तो बहुतसे जीवनयात्री देखे हैं, किन्तु अमावस्याकी अँधेरी रातमें और ऊबड़-खाबड़ पगडंडियोंको पार करनेवाला ये महायात्री अनुपम है । उनके कृतित्वकी समीक्षा करना आलोचकोंका काम है । कवि हृदय तो उनके भव्य प्रकाशमय व्यक्तित्व के सामने केवल श्रद्धावनत हो सकता है। श्रेष्ठिवर श्री अगरचन्दजी नाहटा के इस अभिनन्दन समारोहपर मेरा हृदय ईश्वरसे यही कामना करता है, कि राजस्थानके इस दृढ़ 'साहित्य - सिपाही' की उम्र जहाँ तक हो सके लम्बी करता जाये, ताकि राजस्थानका साहित्य सारे संसारकी साहित्य-वाटिका में अलग ही निराले फूलकी तरह खिला लगे और इस साहित्य-तपस्वी के हीरक अभिनन्दन समारोहकी प्रतीक्षा करते रहें । मधुमय सुगन्ध फैलानेको, 'साहित्य - अगर बत्ती' जलतीजब तक यह कार्य न हो पूरा, तब तक ये साँस रहे चलती । प्रेरणाप्रद व्यक्तित्व के धनी श्री नाहटाबन्धु डॉ० रुद्रदेव त्रिपाठी संसारमें कुछ विरले ही व्यक्ति होंगे, जिनमें सरस्वती और श्रीका समीचीन समन्वय हो । श्री अगरचन्दजी नाहटा एवं श्री भँवरलालजी नाहटा ये दोनों ही बन्धु इस समन्वयके प्रतीक हैं । जीवनकी विभिन्न क्रियाओंसे ऊपर उठकर श्री नाहटाबन्धुने वर्षोंसे श्री साधना के साथ-साथ सरस्वतीकी साधना में भी उतना ही मनोयोग दिया और अपनी ओजस्विनी लेखनी से प्रसूत वैदुष्यपूर्ण साहित्य से जनजीवनको आन्दोलित किया । आजसे लगभग २० वर्ष पूर्व मैं श्री धीरजलाला टोकरशी शाह शतावधानी, बम्बई के साथ जैनसाहित्यसे सम्बद्ध ग्रन्थोंका अवलोकन करने कलकत्ता गया था। वहीं इन दोनों बन्धुओंके दर्शन हुए। राजस्थानकी ठेठ परम्पराके मूर्तिमान् प्रतीक के रूपमें भव्य पगड़ी, ओजपूर्ण श्मश्रु और तेजोमय व्यक्तित्वने मेरे मनपर एक अमिट छाप अंकित की । वहाँ रायल एशियाटिक सोसायटीके संग्रहालयसे नमस्कार महामन्त्रपर रचित प्राचीन ग्रन्थोंके शोधनमें तथा उन्हें उपलब्ध करवानेमें श्री भँवरलालजी नाहटाने अपना पर्याप्त समय हमारे साथ व्यय किया और बादमें निर्वाचित प्रतियोंकी प्रतिलिपियाँ करवाने, उनके फोटो उतरवाने आदिमें उनका अनन्य सहयोग किसी साहित्यसेवी को यह निःसंकोच प्रेरणा देता है कि सत्कार्यों की सिद्धि लिए 'सह वीर्यं करवावहै' मंत्र अवश्य अपनाना चाहिये । Jain Education International दूसरी बार 'श्री महावीर वचनामृत' (मेरे द्वारा अनूदित ) ग्रन्थ झारग्राम (बंगाल) में पूज्य विनोबाजीको हम समर्पित करने गये तब कलकत्तासे लगभग ६० प्रतिष्ठित साहित्यकार एवं सम्मानित उद्योगपतियोंका एक शिष्टमण्डल स्वतन्त्र रूपसे एक रिजर्व डिब्बेमें साथ गया था । उसमें श्री भँवरलालजी नाहटाजी भी थे । इस यात्रामें अतिनिकट रहनेसे श्री नाहटाजीके व्यक्तित्वका निखार और भी अधिक उर्वर प्रतीत हुआ । व्यक्तित्व, कृतित्व और संस्मरण : १७१ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012007
Book TitleNahta Bandhu Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages836
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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