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नाहटाजीकी साहित्यिक-सांस्कृतिक देनका मूल्यांकन तो अभी किंचित् भी नहीं हुआ है। किसीने प्रयास भी नहीं किया प्रतीत होता । यह अब होना चाहिए। जिस दिन यह होगा, साहित्यके अनेक अंधेरे, अनुन्मीलित, रंचमात्र या अर्द्ध-प्रकाशित कोने उजागर होंगे; अनेक नवीन मान्यताओंको आधारभूमि मिलेगी: साहित्य-चिन्तनका प्रवाह नया मोड़ लेता दृष्टिगत होगा और होगा गर्व हमारी संस्कृतिको समग्रतामें । भारतीके सैकड़ों अन्धकारपूर्ण पथोंपर नाहटाजीने मांगलिक, नवीन, चिर-स्मरणीय किन्तु ठोस दीप संजोए और जलाए हैं ।क्या इसका लेखा-जोखा थोड़ेसे शब्दों द्वारा किया जा सकता है ? जो काम सुगठित संस्थाएँ वर्षों के प्रयाससे भी सम्यकरूपेण नहीं कर पातीं, उनको नाहटाजीने अकेले कर दिखाया है और संस्थाओंसे भी अच्छे रूपमें ।
नाहटाजी एक व्यक्ति नहीं, एक संस्था है। ऐसी एक संस्था, जिसके अन्तर्गत अनेक उपसंस्थाएं निरन्तर कार्य करती हैं। सो संस्था हैं नाहटाजी! अपने क्षेत्रमें वे अप्रतिम विद्वान हैं। करोड़ोंमें एक हैं नाहटाजी!
मैं भारतीके ऐसे वरदपुत्रकी दीर्घायु-कामना करता हूँ और हृदयके श्रद्धा-सुमन भावरूपमें उन्हें अर्पित करता हैं। इनका जितना भी स्वागत किया जाय, कम है।
नाहटाजी नाहटे
श्री भरत व्यास करीब पच्चीस बर्ष बीते, मुझे हल्की सी याद है । मैं श्रीयुक्त नाहटाजीके बीकानेर वाले घरमें गया था। वहाँसे वे मुझे बड़े स्नेहके साथ अपने पुस्तकालयमें ले गये और वहाँ उनका साधना संग्रह देखा, तो उनपर मेरी इतनी श्रद्धा हो गई कि उस दिनके बाद आज तक यह श्रद्धा प्रतिदिन बढ़ती ही गई । अब उनके अभिनन्दनके समाचार सुनकर इसके संयोजकों और सयोग्य सम्पादकोंको धन्यवाद देनेको जी चाहता है।
राजस्थानी साहित्यमें जो काम नाहटाजीने अनवरत परिश्रम, लगन और साधनासे किया है, वह साहित्यिक इतिहासमें युग-युगों तक अमर रहेगा।
एक व्यापारिक समाज में उत्पन्न होकर उन्होंने साहित्यसागरमें गोते लगाकर जो विविध मोतियोंका चयन किया है, उन्हें देखकर आश्चर्य, आनन्द, और श्रद्धासे हमारा हृदय भर जाता है। मन सोचने लगता है कि इतना सादा और साधारण जीवन व्यतीत करनेवाला व्यक्ति कितना महान् और असाधारण है।
___ लम्बा डौल, घुटनों तककी धोती, जाँघ तक ढुलता हुआ लम्बा कोट, राजस्थानी शैलीकी मूंछे, शोधकार्यकी खोज करनेवाला पुराना चश्मा और चेहरेकी लम्बाईसे भी लम्बी बाँई तरफको झुकनेवाली केशरिया पगड़ी, निरन्तर चिन्तन करता हुआ चेहरा, तथा बोलनेमें मितव्ययता, इन सब गुणोंका समन्वय करनेवाले, सादा जीवन और उच्च-विचारको व्यक्तित्वका रूप देनेवाले व्यक्तिका नाम श्री अगरचन्दजी नाहटा है। वे अगरकी तरह स्वयं जल-जलकर सारे वातावरणको सुगन्धित करते रहते हैं। अपने अथक
और अनवरत परिश्रमसे जीवनपर्यन्त न हटनेकी प्रतिज्ञा करके अपनी 'नाहटा' जातिको गौरवान्वित किया है।
१७० : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रंथ
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