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प्रायः साहित्यकारोंमें देखा जाता है कि एक-दो महत्वपूर्ण कृति हाथ लगनेपर बरसों तक उसका अचार बनाते रहते हैं । उस कृतिसे किस प्रकार ख्याति अर्जित की जाय, कैसे कोई आर्थिक लाभ उठाया जाय या डिग्री प्राप्त कर ली जाय आदि विचार करते रहेंगे और उस कृतिको दिखायेंगे तक नहीं । परन्तु नाहाजी इन बातोंसे ऊपर हैं। अपने पास ही नहीं अनूप संस्कृत लाइब्रेरी आदि अन्य स्थानोंपर भी कोई कृति शोधकर्ता कामकी होगी तो उसे उपयोगके लिए प्राप्त करवाने की भी पूरी चेष्टा करेंगे । उनको इस प्रकार कार्यरत देखकर मुझे जो प्रसन्नता होती है वह शब्दातीत है ।
मुझे हर बार यह ख्याल आये बिना नहीं रहता कि राठौड़ जैसे डिंगलके सर्वश्रेष्ठ काव्यका सृजन किया और डॉ० टॅसीटरी जैसे किया, वह नगर कितना भाग्यशाली है कि वहाँ नाहटाजी जैसे कर्मठ साहित्य सेवी विद्यमान हैं ।
पृथ्वीराजने जिस नगरमें रहकर वेलि विद्वान्ने राजस्थानी साहित्यका उद्धार
नाहटाजीका अभय जैन ग्रन्थालय राष्ट्रकी महत्त्वपूर्ण निधि है और बीकानेर के लिए गौरवकी वस्तु है । यदि उसे सार्वजनिक रूप देकर उसकी स्थायी व्यवस्था वहाँकी जनता नाहटाजी की देखरेख में करे तो नाहटाजी और बीकानेरका नाम साहित्य जगतमें कल्पान्तर तक अमर रहेगा ।
जय राजस्थानी !
विद्याप्रेमका एक जीवन्त प्रतीक, एक संस्था
डॉ० हीरालाल माहेश्वरी, डी० फिल०, डी० लिट्०
श्री अगरचन्दजी नाहटाका नाम विद्याप्रेमका जीवन्त प्रतीक और संस्थाका बोधक है ।
उनकी स्कूली शिक्षा अधिक नहीं हो पाई । बातचीत के प्रसंग में यदाकदा वे स्वयं ऐसा कहा भी करते हैं, किन्तु स्वाध्याय और निरन्तर अध्ययनशीलताके कारण आज वे देशके मूर्धन्य शोधकर्ता और विद्वान् माने जाते हैं । इस क्षेत्र में दूसरोंके लिए वे प्रेरणा-स्रोत हैं । जिज्ञासुओं, शोधार्थियों और विद्यार्थियों की सहायता तो वे निरन्तर करते ही रहते हैं - हर प्रकारसे उनकी सतत विद्यानिष्ठा और साहित्य - साधना देखकर कभीकभी बहुत ही आश्चर्य होता है - कहाँसे मिलती है उनको यह प्रेरणा ? उनको कभी थकते नहीं देखा इस साधनामें । क्यों नहीं थकते वे ? लक्षाधिक रुपए लगाकर उन्होंने दुर्लभ हस्तलिखित प्रतियोंका संग्रह-संचयन किया है; जो उपलब्ध नहीं हो सकीं उनमें से अधिकांशको प्रतिलिपियाँ करवाई हैं। क्यों और किसलिए ?
इन प्रश्नोंके उत्तर विभिन्न लोग विभिन्न प्रकार से देंगे । किन्तु मूल बातपर सभी एकमत होंगे वह यह कि साहित्य-साधना उनकी आत्माका विशिष्ट संस्कार है; उनकी आत्मा और इस साधना का तादात्म्य है, दोनोंकी तदाकार स्थिति है । इन सबकी प्रेरणा उनको स्वात्मासे ही मिलती है । मेरी समझ में इन सबका एक ही उत्तर है— आत्म- प्रेरणा । पर क्या सभी यह कर पाते हैं ? नहीं, सबके लिए यह सम्भव नहीं है । युगों की सतत साधना इसके लिए अपेक्षित है । मनकी एकाग्रता, दुनियादारी और दैनंदिन सैकड़ों बाधाओं, घटनाओं और अनेक भाँतिकी हलचलोंको स्थितप्रज्ञकों भाँति सहना, उनको निभाते भी चलना तथा साथ ही यह साधना करते जाना - बड़े जीवट, असीम धैर्य और अद्भुत मनोशक्तिका कार्य है । नाहटाजी में ये गुण हैं । उनके ये ही गुण उनको वैशिष्ट्य प्रदान करते हैं । निराला है उनका व्यक्तित्व !
व्यक्तित्व, कृतित्व और संस्मरण : १६९
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