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________________ लेख भी विविध विषयोंपर । नाहटाजी बड़े परिश्रमी आदमी हैं। हर समय आप खोजमें ही लगे रहते हैं । विविध विषयोंमें आपकी गति है । नाहटाजी को अन्वेषणमें बड़ा प्रेम है। साथ ही साथ आपकी स्मरणशक्ति बहुत मजबूत है। इसके बिना इतना काम नहीं हो सकता। १९३६ के बाद नाहटाजी आरा और कलकत्तामें दो-तीन बार मिले। मेरे साथ उनका पत्रव्यवहार तो बराबर चलता रहा है। इस समय आपका सम्मान किया जाना सर्वदा समुचित है। विद्वानोंका सम्मान होना ही चाहिए। मेरी हार्दिक शुभभावना है कि नाहटाजी दीर्घकाल तक नीरोग रहकर इसी प्रकार निरंतर, निरंतराल सरस्वतीकी पवित्र सेवा करते रहें। अमितशोध-सामग्रीके भण्डार श्री अगरचन्द नाहटा डॉ० कन्हैयालाल सहल आजसे लगभग बीस वर्ष पहले राजस्थानी कहावतों-संबंधी अपने शोध-प्रबंधके हेतु सामग्री एकत्र करनेके लिए मैं बीकानेर गया था। जब मैं पहले-पहल श्री नाहटाजीसे मिला तो मैं उनके व्यक्तित्वसे अत्यंत प्रभावित हुआ। मैंने सुन रखा था कि वे शोध-सामग्रीके भण्डार हैं,बहुत ही सहृदय व्यक्ति हैं तथा शोधाथियोंकी सहायता करनेके लिए अनुक्षण तैयार रहते हैं । नागरी प्रचारिणी आदि सुप्रसिद्ध पत्रिकाओं में मैंने उनके अनेक शोधपूर्ण लेख भी पढ़ रखे थे। खुमाणरासो आदिके संबंधमें उन्होंने महत्त्वपूर्ण विचार प्रकट किए थे, जिससे हिंदी साहित्यके इतिहास-लेखकों और शोध-विद्वानोंका ध्यान उधर सहज ही आकृष्ट हुआ था । परिणामस्वरूप हिंदी साहित्यके आदिकालका पुनः परीक्षण होने लगा और उसके पुनर्विवेचनकी आवश्यकता प्रतीत होने लगी। मैंने देखा कि राजस्थानका ही नहीं, बल्कि देशका एक प्रसिद्ध शोधक विद्वान् अपने पुस्तकालयके कक्षमें बड़े सादे लिबासमें बैठा हुआ है। बातचीतमें भी कहीं दर्प उनको छू तक नहीं गया है। आलस्य उनमें नाम मात्रका भी नहीं। उन्होंने अपना एक भवन ही पुस्तकालय और वाचनालयको अर्पित कर दिया है, जहाँ शोधार्थी छात्र और विद्वान् आते रहते हैं और उनके विशाल पुस्तकालयसे लाभान्वित होते हैं । जहाँ अन्यत्र कोई ग्रंथ उपलब्ध नहीं होता, वह श्री नाहटाजीके पुस्तकालयमें प्राप्त हो जाता है । किसी ग्रंथका नाम बताते ही, वे अपना अन्य कार्य छोड़कर भी शोधा के लिए वह ग्रंथ यथाशीघ्र उपलब्ध करनेमें जुट जाते हैं। असंख्य महत्त्वपूर्ण पांडुलिपियाँ उनके पुस्तकालयको सुशोभित कर रही हैं । प्रायः देखा जाता है कि जिन विद्वानोंके पास पांडलिपियाँ होती हैं, वे शोधार्थियोंके पास पांडुलिपियाँ भेजते नहीं किंतु श्री नाहटाजीकी इस संबंधमें उदारता बेमिसाल है क्योंकि डाक द्वारा भी वे अनुसंधित्सुओंको अपनी पांडुलिपियाँ भेजते रहते हैं जो शोधार्थी उनके यहाँ पहँच जाता है, उसकी तो वे सभी प्रकार सहायता करते हैं। उसे तनिक भी कठिनाई हई तो वे उसके निराकरणमें जुट जाते है। राजस्थानी कहावतोंके संबंधमें संस्कृत, पालि, प्राकृत, अपभ्रश, हिंदी-सभी संबद्ध और आवश्यक पुस्तकें उन्होंने मेरे लिए सुलभ कर दी। इतना ही नहीं, कहावतोंके जो हस्तलिखित संग्रह उनके पास थे, व्यक्तित्व, कृतित्व और संस्मरण : १५१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012007
Book TitleNahta Bandhu Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages836
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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