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________________ श्री नाहटाजीकी ओरसे उक्त लेख प्राप्त होनेके पश्चात् मैंने तुलनात्मक दृष्टिसे उस रासड़ेका संपादन किया और रूपांदेकी गहराईमें उतरनेका अवसर भी श्री नाहटाजीने ही दिया। तत्पश्चात् गुजरातकी लोकजिह्वा पर चढ़े हुए रूपांदेके भजन एवं पद हैं या नहीं, इसकी खोज अपने हाथमें लेनेका मुझे स्मरण है। - इसके बाद पड़दा गिरा ! बरसके बरस व्यतीत हो गये। मानों सम्पर्क ही टूट गया हो। पत्रव्यवहार बन्द हो गया था। फिर भी विस्मृत नहीं हुए थे। आदरणीय श्री नाहटाजीको जब कभी गुजरातका कोई मिलता तो आप उससे पूछते कि 'चन्दरवाकरजी क्या करते हैं ? लोक-गीत किम्वा लोक-वार्ताओंका सम्पादन करते हैं ?' मेरे एक मित्रने श्री नाहटाजीको उत्तर दिया कि "इन दिनोंमें तो उनकी कहानियाँ ही प्रसिद्ध हो रही हैं।" "आप उन्हें मेरे नामसे कहें कि लोक-साहित्य एकत्रित करना चालू रखें । करने योग्य कार्य यही है।" श्री नाहटाजीका मुझे उपर्युक्त सन्देश प्राप्त हुआ। किन्तु वास्तवमें तो मैं वहाँ कहानियाँ लिखने हेतु ही लोक-साहित्यका चयन करने गया था। वहाँ नमाज पढ़ते हुए मुझसे मस्जिद ही चिपट गई। मेरे लेखनसे मुझे ऐसा प्रतीत होने लगा। एकांकी लिखना तो लगभग छट ही गया था। लघु-वार्तायें लिखी जा रही है किन्तु, निरूपण स्वरूप ताजगी प्राप्त नहीं हुई। ऐसा मुझे क्षोभ एवं असन्तोष रहता है। कहानियाँ लिखी जा रही हैं किन्तु, लोक-जीवनको-लोक-साहित्यके संग्रह हेतु मैं भटक रहा हूँ। आबूसे दमण गंगा तक! और द्वारिकासे दाहोद तक ! अनेक मानवीयोंसे मिलना होता है। उनमें व्यापारी, कारखानेवाले, कृषक लोग, खेतिहर लोग, शिक्षक, सरकारी तन्त्रके अधिकारीवर्ग, सम्पादक वर्ग, सम्वाददाता लोग, मजदूर लोग, चोर एवं बाबू लोग और स्त्री-समाजमेंसे भी अनेकानेक ! ये लोग मुझमें सतत चेतना जागृत कर मुझे हैरान-परेशान करते रहते हैं। मुझसे यह राम-कहानी अपने स्नेही एवं हितेच्छु श्री नाहटाजीसे नहीं कही जाती और न मुझसे सही भी जाती। लोक-साहित्यके कार्यार्थ आज मैं सौराष्ट्र विश्वविद्यालयमें जा बैठा हूँ। किन्तु, फिर भी चारणीसाहित्यकी हस्तलिखित प्रतियोंके मध्य स्थानीय ऐतिहासिक-सामग्रीके ढेरके मध्य पशु-पालकोंकी डाँणियोंके इहवत्तके मध्य अमेरिकी अध्यापकके साथ स्व० मेघाणीकी कर्म-भूमिमें भटकते-भटकते शिरपर Folklore of Gujarat की तलवार लटक रही है। तिसपर भी क्षेत्र संशोधनके कार्य हेतु भटकते समय मिल गये दरबारश्री सातामाई खाचर, सुरिंग मामा जैसे पात्र। ये न तो कहीं विश्राम लेने देते हैं और न ही 'अंगदविष्टि" का सम्पादन-कार्य पूर्ण करने देते हैं । फिर भी माननीय श्री नाहटाजीकी ओरसे प्रेषित शुभेच्छा-पूर्ण वाणी मेरे कानोंमें गूंजती ही रहती है कि, "लोक-साहित्यकी खोजमें अपना समय लगाओ।" वयोवृद्ध परिजनवत् है, सतविचार-“सेवी हैं, गुणी-जन हैं, विद्वान हैं, सारशोधक संशोधक हैं साहित्यके-लोक साहित्यके और धर्मशास्त्रके। तब आप मुझे मिले नहीं थे। फिर भी मैंने इन्हें पत्र लिखनेका साहस कर लिया कि, “चन्दर ऊग्यचालवू" नामक गीत कथायें Ballads संग्रह प्रकाशित हो रहा है । अतः आप इसकी प्रस्तावना लिख भेजें।" आपकी ओरसे मुझे तुरन्त ही उत्तर प्राप्त हुआ कि "अवश्य" । उस उमंग, उस साहस और उस आकांक्षाको मनके गहवरमें ही रखना पड़ा क्योंकि, प्रकाशन संस्था चाहती थी कि ग्रन्थ दस-बारह दिनोंमें ही बाजारमें आ जाय । मैं उन दिनोंमें गाँधी जन्मभूमिमें था और १४८ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रंथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012007
Book TitleNahta Bandhu Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages836
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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