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विरल साहित्यिक श्री नाहटाजी
पिंगलशी मेघाणन्द गढवी देश-विदेशके ऐतिहासिक पृष्ठों पर अनेक चित्र उभरे और नष्ट हो गये। अनेक प्रकारको संस्कृतियोंका सृजन हुआ और वे नष्ट हो गई। फिर भी भारतवर्ष में वैदिक-कालसे लेकर आज तक भारतीय जनताने देश-रक्षाके कार्यमें अपना अद्भुत पराक्रम दिखाते हुए संस्कृतिकी गौरव-वृद्धि की और उत्साहको बनाये रखकर विश्वमें यश प्राप्त किया। हमारे देशमें ऐतिहासिक विद्वान् एवं साहित्य-संशोधकोंने इस कार्य में जो सहयोग दिया, वह सामान्य नहीं है।
यदि हमारे देशके इतिहासविद् पण्डितोंने इस प्रकारके साहित्यकी भेंट जनताको नहीं दी होती तो हमारे पास केवल उन यशःपुंज विद्वानों के नाममात्र ही शेष रहते।
प्राचीन भारतीय इतिहास और संस्कृति-संशोधन क्षेत्रमें अवर्णनीय सहयोग देनेवालोंमें साहित्यिकसंशोधकके रूपमें बीकानेर निवासी श्री अगरचन्द नाहटाजीका नाम सुप्रसिद्ध है। आप संस्कृत-साहित्य, लोकसाहित्यके पूर्ण ज्ञाता होनेके साथ-साथ चारणी साहित्यके भी उतने ही उपासक एवं ज्ञाता है। आपने चारणीसाहित्यके कतिपय विवादास्पद प्रश्नोंको हल करने में निर्णयात्मक प्रमाण प्रस्तुत कर अपनी प्रकाण्ड विद्वत्ताका परिचय दिया है।
आपसे मैं जितना दूर रहता हूँ, उतना ही आपकी प्रवृत्तिके समीप रह रहा है। आपके साहित्यव्यवसायका सौरभ राजस्थानकी सीमाओंका उल्लंघन कर कच्छ, सौराष्ट्र और गजरातके साहित्योपासकोंके घर-घर पहुँच गई है।
किसी भी साहित्यकारको किसी सन्त, कवि, भक्त, दाता, वीर-पुरुष किम्बा किसी साम्प्रदायिक जानकारीकी आवश्यकता होनेपर वह श्री नाहटाजीसे पत्र-व्यवहार प्रारम्भ करता है और पूछी गई जानकारी
जी द्वारा पूर्ण हो जाती है। अतः हम निःसंकोच यह कह सकते हैं कि नाहटाजी अब व्यक्ति नहीं अपितु साहित्यकी एक जीवित-संस्था ही बन गये हैं।
नाहटाजीने इतिहासके साथ-साथ काव्य-शास्त्रमें विद्यमान ऐतिहासिक प्रमाण, उल्लेख, प्रकार, भाव, अनुभाव आदि विषयोंपर समाचारपत्रोंमें लेखों द्वारा एवं ग्रन्थ-प्रकाशन द्वारा हमारी लूटी जा रही लोककथाओं, लोक-गीतों, चारणी-साहित्य और इसी प्रकारसे कण्ठस्थ साहित्यको, पुनर्जीवन प्रदान किया है ।
आपने वाजिविनोद, कथारत्नाकर और जैन मुनिके प्रबन्ध-संग्रह ग्रन्थ एवं कतिपय हस्तलिखित ग्रन्थोंका अध्ययन तथा संशोधन कर नष्ट होते हुए साहित्यको बचा लेनेकी प्रशंसनीय सेवा की है।
आपका कथन है कि साहित्य-क्षेत्रमें राजस्थान, कच्छ, गुजरात, सौराष्ट्र प्रदेशोंके मध्य बहुत ही समानता और सांस्कृतिक ऐक्य प्रवर्तित है । सौराष्ट्र और कच्छकी ऐतिहासिक वार्तायें एवं लोक-कथायें और चारणी-साहित्य, राजस्थानमें प्रचुर मात्रामें उपलब्ध होता है।
आपके उपर्युक्त मन्तव्य परसे यह समझ सकते हैं कि नाहटाजीकी साहित्यिक सूझबूझ मात्र राजस्थान तक ही सीमित नहीं, अपितु कच्छ, सौराष्ट्र, गुजरात एवं उत्तर भारत तक प्रसरित है।
ऐसे बहुश्रुत, इतिहास-रत्न, श्रेष्ठिवर, विद्यावारिधि श्री अगरचन्दजी नाहटाका सम्मान, भारतीय संस्कृतिको स्वस्थ, सुरक्षित बनाये रखने के लिये जड़ी-बूटीके समान सिद्ध होगा।
व्यक्तित्व, कृतित्व और संस्मरण : १४३
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