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________________ बनी हुई है। श्री नाहटाजी कुछ वर्ष पहले मेरे घर भी पधारे और हमारे प्राच्य-विद्यामंदिरको भी देखा। हमारा पत्र व्यवहार अब भी चालू है । उस प्रथम भेंटको तो आज करीब बीस बरस हुए और फिर भी मैं देख रहा हूँ कि अभी भी इनका विद्या प्रेम, संशोधन और लेखन-कार्य चल रहा है । इनका कार्य क्षेत्र काफी बड़ा है और जैन साहित्य, प्राचीन मारुगुर्जर (ओल्ड वेस्टर्न राजस्थानी और गुजरातो) भाषा साहित्य, वर्तमान हिंदी साहित्य और मरुभूमिकी प्राचीन लोक भाषा आदिकी इनकी ओरसे बहुत ही सेवा होती चली आई है। इन सब क्षेत्रोंमें कई संस्थायें कितने ही प्रकाशन और कितने ही प्राचीन हस्तलिखित ग्रंथोंके संशोधन परीक्षण और संरक्षणमें इनका कई तरहका सहयोग है । ऐसे हमारे पूज्य श्री अगरचंदजी नाहटाको मेरी ओरसे नम्रतापूर्वक अभिवादन है। विद्वत्प्रवर श्री अगरचन्दजी नाहटा श्री पं० विद्याधर शास्त्री वंश परम्परासे एक सफल व्यापारी होकर भी श्रीयत अगरचन्दजी नाहटाने ज्ञान विज्ञानके क्षेत्रमें जिस यशस्वी स्थानको प्राप्त किया है, उस स्थानके अधिकारी विद्वान् केवल राजस्थानमें ही नहीं अपितु समस्त भारतमें भी यदाकदाचित् ही उपलब्ध होते हैं ।। जैन संस्कृतिके मौलिक तत्वों और उसके इतिहास पर तो आपका असामान्य अधिकार है ही परन्तु इसके साथ ही हिन्दी-संस्कृत अपभ्रंश और राजस्थानीके दुर्लभ प्राचीन हस्तलिखित ग्रन्थों और प्राक्तन अभिलेखोंके संग्रह तथा अनुशीलनमें आपकी जो अनुपम अभिरुचि है, उसके कारण आपका ज्ञान क्षेत्र इतना विस्तीर्ण हो चुका है कि उसके द्वारा आप निरन्तर विविध विषयोंके शोधमें प्रवृत्त अनेक पी-एच. डी. और डी. लिट. के शोध स्नातकोंकी सदैव स्मरणीय सहायता करते रहते हैं। स्नातकोंकी इस सहायताके अतिरिक्त आप जैन साहित्य और राजस्थानी साहित्य पर जिन विस्तीर्ण भाषण मालाओंको प्रस्तुत करते रहे हैं उनसे भी समस्त भारतके विद्वान् प्रभावित होते हैं और सदैव उनको सुननेकी प्रतीक्षामें रहते हैं। ज्ञान-विज्ञानके क्षेत्रकी इस निजी विशेषताके साथ ही आपने अभय जैन ग्रन्थ भण्डारकी स्थापना और अपने भातृज श्रीयुत भंवरलाल नाहटाके साथ अभिलेख संग्रह और नाना मुनिजनोंकी वैदुष्यपूर्ण वाणियोंके सुसम्पादित प्रकाशनसे राजस्थानके शोध क्षेत्रको जो देन ही है, वह सर्वथा अद्वितीय है। जैन मुनियोंकी वाणियोंके प्रकाशनके अतिरिक्त हिन्दी, संस्कृत और राजस्थानीमें यत्र तत्र विकीर्ण ज्योतिष, आयुर्वेदिक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थोंका उद्धार भी आप सदैव करते रहते हैं। भारतके प्रायः समस्त साहित्यिक और सांस्कृतिक पत्रोंमें हजारोंसे ऊपर आपके जो लेख छपे हैं, जिनसे आपके व्यापक ज्ञानका परिचय मिलता है । आपके कारण बीकानेरका ज्ञान-गौरव समस्त भारतमें प्रतिष्ठित हुआ है। परमात्मा आपको दीर्घायु करें और आप निरंतर वर्तमानके समान सदा साहित्यकी वृद्धि करते रहें। व्यक्तित्व, कृतित्व और संस्मरण : १३७ १८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012007
Book TitleNahta Bandhu Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages836
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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