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________________ दोनों क्षेत्रोंमें काम करते रहे हैं, अब भी कर रहे हैं। जहाँ वे एक कुशल एवं सुदक्ष व्यापारी हैं, वहाँ एक गम्भीर विद्वान, सूक्ष्मदर्शी चिन्तक एवं सफल साहित्यकार भी हैं। इसे कहते हैं, एक साथ दो घोड़ोंपर सवार होकर दौड़ लगाना । सन्तुलनकी इस अद्भुत क्षमतापर जनमन कैसे न चमत्कृत हो जाएगा। नाहटाजीको देखें, तो लगता है, कोई मारवाड़ी सेठ है। वही सिर पर पगड़ी, पुरानी शैलीका साधारण कोट या कुर्ता और धोती । कौन कहेगा, इस मुद्रामें कोई साहित्यकार भी हो सकता है। साहित्यकार होने की सहसा कोई कल्पना ही नहीं हो सकती। श्री नाहटाजी आजके युगके धनी एवं साहित्यकार ए भी अपनी परम्परागत सादगीमें और वानभति रखते हैं। कोई अहंकार नहीं. प्रदर्शन नहीं. दंभ नहीं, दिखावा नहीं । जो है वह सहज है, निष्फल है, निर्मल है । इस प्रकार शिष्टता एवं शालीनताकी साक्षात् जीवित मूत्ति हैं नाहटाजी। - . एक अध्यवसायशील व्यक्ति कितना महान एवं विराट कार्य कर सकता है. नाहटाजी इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। प्राचीन हस्तलिखित ग्रन्थों का एक विशाल पुस्तकालय है नाहटाके पास, उनका अपना ही संग्रहीत एवं नियोजित । मैंने अपनी बीकानेर यात्रामें जब वह गृह पुस्तकालय देखा तो, विस्मय-विमुग्ध हो गया मैं । जैसा मैंने सुना था, उससे कहीं अधिक ही देखा मैंने आँखोंसे । प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश, राजस्थानी, गुजराती और हिन्दीके सहस्राधिक दुर्लभ ग्रन्थों का यह ज्ञान भण्डार है, काव्य, नीति आदिसे सम्बन्धित अनेकानेक अद्भुत रचनाएँ संग्रहीत हैं। नाहटाजी का यह गह पुस्तकालय बीकानेर जैसी मरुभूमिमें वह सतत प्रवहमान ज्ञाननिर्झर है, जहाँ दूर-दूर तकके ज्ञानपिपासू अपनी प्यास बुझाने आते हैं। वस्तुतः बीकानेर श्री नाहटाजीके यशस्वी कृतित्वके कारण साहित्यकारोंके किए आज एक पावन तीर्थधाम बन गया है। शोध क्षेत्रमें काम करने वाले भारतीय विद्वान् या छात्र कहींके भी हों, नाहटाजीसे अवश्य कुछ परिबोध एवं परामर्श पाने की बात सोचते हैं। सोचते ही नहीं, पाने जैसा पाते भी है वे उनसे । नाहटाजीके निर्देशनमें अनेक पी-एच० डी० हो चुके हैं और हो रहे हैं। नाहटाजी का द्वार एतदर्थ सबके लिए खुला है। उनका निर्देशन इतना सक्षम, सबल एवं प्रमाणभूत होता है कि शोधकर्ता का पथ प्रशस्त हो जाता है । वह शीघ्र ही गतिशील होकर अपने निर्धारित लक्ष्य पर पहुँच जाता है, उसकी रचना विद्वज्जगतमें प्रतिष्ठा प्राप्त कर लेती है। ऐसे अनेक विद्वान और छात्र मेरे परिचयमें आए हैं। जिन्होंने अपने शोधकार्य में सहयोग पाने की चर्चा करते हुए नाहटाजी की मुक्त कण्ठसे प्रशंसा की है। ठीक ही कहा है 'नहि कृतमुपकारं साधवो विस्मरन्ति ।' श्री नाहटाजी की साहित्यिक विधा मुख्य रूपसे इतिहास है। अनेक प्राचीन विद्वानोंके महनीय व्यक्तित्व एवं कृतित्व को नाहटाजी की सधी हुई परिष्कृत प्रतिभाने कितना उजागर किया है, यह देख सकते हैं, उनके यत्र-तत्र प्रकाशित विस्तृत निबन्धोंमें । नाहटाजी की इतिहास सम्बन्धी स्थापनाएँ यों ही नहीं होती हैं, उनकी पृष्ठभूमिमें होता है तलर्पशी गहन गम्भीर चिन्तन एवं मनन । इतिहाससे सम्बन्धित अब तक उन्होंने जो भी दिया है, वह इतना प्रमाणपुस्सर दिया है, कि उसे कोई यों ही चुनौती नहीं दे सकता। इतिहासके अतिरिक्त धर्म, दर्शन, आख्यान, नीति आदिसे सम्बन्धित रचनाएं भी उनकी इतनी है कि उनका एक विराटकाय संग्रह हो सकता है। मैं साहित्यिक संस्थाओंके अधिकारी सज्जनोंसे अनुरोध करूँगा कि नाहटाजीके निबन्धों तथा अन्य रचनाओं को पुस्तक रूपमें प्रकाशित किया जाए, ताकि विभिन्न विषयोंके अध्येताओंको उनकी विचार सामग्री सहज रूपसे एकत्र उपलब्ध हो सके। १३० : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रंथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012007
Book TitleNahta Bandhu Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages836
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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