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________________ श्री नाहटाजी का अभिनन्दन एक प्रचलित परम्परा का पालन मात्र नहीं है। वस्तुतः वे अभिनन्दननीय है, अपने सृजन की चिरस्मरणीय गरिमासे । मौलिक अभिनन्दन वही है, जो व्यक्ति के अपने गौरवपूर्ण व्यक्तित्व एवं कृतित्वसे प्रभावित होकर जनमानसमें उभरा करता है । यह वह आलोक है, जो विद्युत् की तरह चमक कर सहसा अन्धकारमें सदाके लिए विलीन नहीं हो जाता है । महाकालके पथपर आने वाले लम्बे पडावों को पार करता हुआ यह समुज्जवल यशः प्रकाश भविष्य की ओर बढ़ता जाता है और इस पथ के अनेक भूले-भटके यात्रियों को प्रेरणा का परिबोध देता जाता है। श्री नाहटा अपने 'अगरचन्द' नामके अनुरूप ही अगरवर्तिका की तरह दिनानुदिन महकते रहें तथा चन्द्र की तरह चमकते रहें। साहित्यिक जगत् को उनसे अभी और भी आशाएँ हैं। उन्हें अभी और भी बहुत कुछ देना है। मुझे आशा ही नहीं, दृढ़ विश्वास है कि अब तक उन्होंने जो दिया है, उससे भी कहीं अधिक श्रेष्ठ एवं श्लाघनीय वे देते रहेंगे, जिसपर अनागत की प्रबद्ध प्रजा सात्विक गौरवानुभूति करती रहेगी। संशोधक नाहटाजी गणिवर्य-जनकविजयजी श्री अगरचन्द नाहटा ग्रन्थ समितिकी पत्रिका मिली। आप लोगोंका प्रयास स्तुत्य है । नाहटाजीने भगवान महावीरके आदर्श श्रमणोपासकके तुल्य जीवन व्यतीत किया है। साहित्यिक एवं प्राचीन ग्रन्थों के संशोधन विषयमें तो एक अद्भुत कार्य करके अपनी साहित्यरुचिको चार चांद लगाए हैं। श्री नाहटा-बन्ध श्री मुनि कान्तिसागरजी इतिहास शिरोमणि, पुरातत्वज्ञ श्री अगरचन्दजी, श्री भंवरलाजी नाहटा भारतके नामांकित विद्वानोंकी गणनामें अपना स्थान रखते हैं। इन्होंने सैकड़ों अलभ्य ग्रन्थोंका सम्पादन व प्रकाशनका कार्य किया है । जन्मजात-व्यावसायिक एवं लक्ष्मी पुत्र होनेपर भी इतिहास व पुरातत्त्वके विषयमें जो शोध व खोजकी है, वह अनुमोदनीयके साथ-साथ अनुकरणीय भी है। इस प्रकार व्यापारिक जीवन होते हुए भी साहित्य-सेवामें इतना समय देनेवाले विरले ही व्यक्ति होंगे। जैसलमेरका साहित्य-भंडार तो अपने आपमें अनूठा है ही, किन्तु नाहटा बन्धओंका साहित्य-संग्रह भी बीकानेरमें अद्वितीय है । युग प्रधान जिनचन्द्रसूरि आदि ग्रन्थोंका लेखन, सम्पादन, इतिहासज्ञोंको सतत नूतन ज्ञातव्यको उपलब्धियाँ कराते हैं । नाहटा बन्धुओंकी धर्मनिष्ठा. साहित्य प्रेम, सरलता, ज्ञानार्जनमें एकाग्रता आदि अनेक गुण ऐसे हैं जिनके कारण मानवका आकर्षित होना स्वाभाविक है।। इन सब विशिष्ट गुणोंके साथ ही इनमें एक सर्वोपरि विशेषता यह है कि जीवन में कदाग्रह दृष्टिका अभाव है। जब कभी व जिस किसीने खरतरगच्छ-साहित्यपर प्रहार किया तो इन्होंने सदा उचित उत्तर दिया है, सत्यको सामने रखा है और उसमें सदा निष्पक्ष दृष्टिका ही परिचय दिया है। इसीका परिणाम है कि उन्होंने औचित्यका उल्लंघन कभी नहीं किया । व्यक्तित्व, कृतित्व और संस्मरण : १३१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012007
Book TitleNahta Bandhu Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages836
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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