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अभिनन्दन
सर्वदेव तिवारी "राकेश"
अभिनन्दन, हे विद्यावारिधि, बुद्धि-बृहस्पति, मुनिवर ! अक्षरजीवी, ऋषि-कुल-गौरव, स-हित-भावना-भास्वर ! अगरु-गन्धसे पूरित कण-कण श्री-शारदा-निकेतन, गहन श्वेद-सरि बही, लुप्त या गुप्त बन गए चेतन ! रम्य लताएँ लक्ष-लक्ष साहित्य-कुंजमें लहर भरी, चंचल रस-मारुत-विलाससे बढ़ी भारती जीर्ण तरी ! दमकाया वाणी का दर्पण, अक्षर-अक्षर चमक उठे, नाम गणेशी-मन्त्र बना है, नित नव गणपति दमक उठे ! हर्षित कला, धर्म या संस्कृति-गौतम-नारी रजसे, टापे को उपवनमें बदला, अपर सष्टि रच अज-से ! स्वयं शीलमें पुस्तक-आलय, विश्वकोष जीवित पर, धर्म, काव्य, संस्कृतिके संगम, शोध-तमिस्रा भास्कर !
अभिनन्दन श्री सीथल, बीकानेर
अभिनन्दन है आपका, भक्ति भावके साथ । गर्व नहीं है मानका, गहत ज्ञान परमार्थ ।। रक्षक रामको जो रहे, वन्दे नर अरु नार । चंचल चित वशमें रहे, तब बेड़ा हो पार ॥ दया युक्त हो लघुन पे, दान ज्ञानका देह । जीव सफल होवे तभी, सदा सज्जनसे नेह ॥ नाम नरोत्तमसे हुआ, महिमा बढ़ी अपार । हरदम लिखते लेख है, हंस वंश पय सार ।। टाले अविद्या भूतको, तत्त्व ग्रन्थका लेह । तत्त्व सदा वा वाणीमें, कवि बानीको देह ।।
१२४ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रंथ
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