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विश्व-कोषमें अमर रहेगा अगरचन्द का नाम
श्री कल्यागकुमार शशि इतना दिया पुस्तकालय को साहित्यिक भण्डार नित मुमुक्षु जग पायेगा, नव अन्वेषणके द्वार शिक्षा-पट पर लिखे रहेंगे, यह समस्त उपकार जो प्रशस्तियाँ लुप्त प्राय थीं किया पुनर्गद्धार
पूरा जीवन निर्विकार, 'साहित्यिक सेवा ग्राम'
विश्वकोषमें अमर रहेगा, अगरचन्द का नाम तुम्हें, समर्पित दिखा स्वयम् ही अन्वेषज्ञी ज्ञान एक लक्ष्य ही रहा निरन्तर, नूतन अनुसन्धान जीवन की असारताओंमें है कृतित्व महान इस नश्वर जगमें ऐसे ही जीवन आयुष्मान
अन्तरङ्ग, बहिरङ्ग रहे, जिनके सदैव निष्काम
विश्वकोषमें अमर रहेगा, अगरचन्द का नाम नई विधाएँ देनेवाला, किया सतत निर्माण भरे अमरताके शरीरमें, नित आलोकित प्राण मंथनमें समदृष्टि रहे सब गीता, वेद, पुराण लिखा वही, जिसका जैसा भी, मिला अकाट्य प्रमाण
ऐसी सफल लेखनी, जिसने लिया नहीं विश्राम
विश्वकोषमें अमर रहेगा अगरचन्द का नाम कोई ऐसा क्षेत्र नहीं है जिसमें दिखे न आप मुखरित दीखी दिशा दिशामें लेखन की पद-चाप बाधाओंमें रहा प्रगति मय कर्मठ कार्य-कलाप युगों-युगों, तक अमर रहेगी, अमर, कलम की छाप
ऐसे कलम-कार मानव को, शत शत वार प्रणाम विश्वकोषमें अमर रहेगा, अगरचन्द का नाम
श्री अगरचन्दजी नाहटाके प्रति
गौरी शंकर गुप्त मूत्ति हो सौजन्य की, तब साधना अभिराम ! समर्पित जीवन तुम्हारा, अमर-उज्ज्वल नाम !! सहज मूल्यांकन न संभव है कि ऐसा काम ! तुम्हें अर्पित सुमन श्रद्धाके असंख्य प्रणाम !!
श्रद्धा-सुमन : १२३
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