SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 155
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रद्धाञ्जलि शोभनाथ पाठक अपरिग्रह स्याद्वाद सत्यव्रत उद्घोषक शतशः प्रणाम । गरिमा ग्रन्थों की आंक रहे आलोकित जिससे धरा धाम ॥ रत्नत्रय से संवरे पुद्गल की परख, निखार रहे । चन्दा समशांति उडेल रहे, नित सत्य शील का स्रोत बहे.॥ वर्शन की पैठ अनूठी है जो आज विश्व की थाती है। नादानी में भटके जन को बस यहीं शांति मिल पाती है । हम कितना और बखान करें, युग में विद्या वारिधि भर दो। टालेंगे त्रिविध ताप युग का, हे ईश! इन्हें जीवन बल दो। साहित्य, संस्कृति एवं सुजनता के प्रतीक श्री कलाकुमार हे वाणी के वर वरद सुवन, शतकोटि तुम्हारा अभिनन्दन ! इतिहास मनुज का नहींमनुजता का पलपल दुहराता है, चीत्कार मनुज का नहीं मनुजता का विह्वल घहराता है । जो 'तमसो मा ज्योतिर्गमय' का किया प्रथम मंत्रोच्चारण । हे अमर ज्योति के संधानक, शत कोटि तुम्हारा अभिनन्दन । खुल गये कपाट, उठ गये ललाट, खिल गये मनुजता के शतदल । धुल गये कषाय-उर-अन्तराय बह चले सरित, भर स्वर कलकल । प्राची के स्वर्णिम प्रांत बीच, गा उठे बिहग मंगल-वंदन । शुचिता, ऋजुता के सौम्य सेतु, शत कोटि तुम्हारा अभिनन्दन ।। था हुआ एक साधक महान्की अडिग साधना, ज्ञान-ध्यान; शिव-जटा-यूथ से ललक-किलक था हुआ देवसरि पुरश्चरण । तुम अपर भगीरथ बन आये, वसुधा के वर वसु अमर प्राण ! हे नव-जीवन के वरदायक, शतकोटि तुम्हारा अभिनन्दन !! १२० : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रंथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012007
Book TitleNahta Bandhu Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages836
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy