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________________ श्रद्धाञ्जलि सूरजचन्द डाँगी अगरचंद सुरभिन सदा, साक्षी सूरजचंद । आत्मा का निज भाव है, शुद्ध सच्चिदानंद ।। शुद्ध सच्चिदानन्द वीर्य घ्र व शांति है। दर्शन ज्ञान सौख्य सदा विश्रांति है। जीवन सुन्दर मधुर मिटी विभ्रांति है। अन्तर्दृष्टि सहज हित सम्यक क्रांति है। सरस्वतीके वरद पुत्र श्री राधेश्याम शर्मा 'श्याम' हे सरस्वती के वरद पुत्र, शत बार तुम्हारा अभिनन्दन ! इस धरती पर तुम 'चन्द्र' रूप, शीतल किरणों को बिखराकर। दे रहे मनुज को ज्ञान अमित साहित्य-संस्कृति को निखरा कर । शोधक, साहित्यिक सजग रूप, तुम एकनिष्ठ सेवारत हो । हो धर्म ध्वजा के प्रबल प्राण, कृतियों के पुनरुद्धारक हो। क्षत-विक्षत ग्रंथों को चुनकर, तुमने उनको नव प्राण दिये । साहित्य-सृजन के नायक बन, भूले-भटकों को त्राण दिये । तुम हो निशिदिन साधनालीन, संस्कृति को सब कुछ दान किया। लिखकर तुम ने सद्ग्रंथ अमित, जन-जीवन का कल्याण किया। साधना-पंथ के अडिग पथिक, तुम युग-युग तक अभियान करो। निज ज्ञान-रश्मि को ज्योतित कर, जन-मंगल का संधान करो। • साहित्य जगत् के अभियानी, महको, महके जैसे चंदन ! हे सरस्वती के वरद पुत्र, शत बार तुम्हारा अभिनंदन ! श्रद्धा-सुमन : ११९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012007
Book TitleNahta Bandhu Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages836
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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