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________________ साहित्य-गगन के दीप्तिमान नक्षत्र, तुम्हें शत शत प्रणाम श्री अनूपचन्द, न्यायतीर्थ, साहित्यरत्न (२) अभिमन्दनीय आदर्श पुरुष ! संस्कृत हिन्दी औ प्राकृत का उद्भट विद्वत्ता-महा धाम । अध्ययन तुम्हारा है विशाल । अमृत बरसाता रहे सदा गुजराती राजस्थानी का शुभ अगरचंद यह अमर नाम । तुमही से उन्नत आज भाल । साहित्य-शोध के कामों में तन मन धन अर्पण किया आज । निःस्वार्थ भावना से प्रेरित साहित्य मनीषी! योगिराज ।। तुम सफल समालोचक अद्भुत । निर्भीक प्रवक्ता पत्रकार । आगम ग्रंथों के अभ्यासी प्रतिभाशाली साहित्यकार ।। कोई भी ऐसा पत्र नहीं जिसमें न तुम्हारा छपा लेख । आश्चर्य चकित हैं महारथी साहित्यिक गति विधि देखदेख ॥ साहित्य प्रणेता कोई भी कैसा भी आवे किसी काल । सब कुछ सामग्री पाकर के वह हो जाता तुमसे निहाल । (८) तुम परम सादगी के पुतले भावुक, जिज्ञासु, अति उदार । हित-मित प्रिय भाषी विद्वत प्रिय ! श्रद्धेय ! प्रचारक सद्विचार ॥ तुम प्रबल पारखी पुरातत्त्व ! इतिहास निपुण औ कर्मनिष्ठ। साहित्य शिरोमणि ! गुण-ग्राहक! नित सत्यपरायण धर्म निष्ठ ॥ अज्ञात पुरानी रचनाएं साहित्य क्षेत्र में है इतना लाकर प्रकाश में किया काम । सम्मान तुम्हारा कर्म वीर साहित्य जगत में उस ही से जिस ओर लेखिनी चली गयी हो गया तुम्हारा अमर नाम ।। बन गई लोह की वह लकीर ॥ (११) उद्घाटित नूतन तथ्य करो, शतशः वर्षों तक रह ललाम । साहित्य-गगन के दीप्तिमान नक्षत्र तुम्हें शत शत प्रणाम ।। ११८ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रंथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012007
Book TitleNahta Bandhu Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages836
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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