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श्रद्धाञ्जलि
श्री व्रजनन्दन गुप्त 'ब्रजेश'
अम्ब ! भारती समोद, सहज सुभाय भरीचारु चन्द्र मुख ही सौं, चन्द्र जस गा रही । ज्ञानकी अखण्ड ज्योति,
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जग मग चहुँ ओरललित निबन्धन मेंदिव्य छवि पा रही ।
कहत ' व्रजेश' बीकानेर की कनी हू धन्य, देश औ विदेशन मेंकीरति कमा रही । हिन्दी राष्ट्र भारती के मंजु मौन मन्दिर में, अगर सुगन्ध नित्यनई-नई छा रही ॥
अगरचन्द नाहटाजी का शत शत अभिनन्दन
श्री 'काका'
जिनका अभिनन्दन करने को उत्सुक अभिनंदन है । सरस्वती के पुत्र नाहटा जी का अभिनंदन है ॥ (१)
बचपन से ही सरस्वती की सतत साधना करके । लिखे पचासों ग्रंथ आपने मनमें जन-हित धरके ॥ शोध पूर्ण कई लेख लिखे जग में जिनका बंदन है । सरस्वती के पुत्र नाहटा जी का अभिनंदन है ॥
(२) श्री सिद्धान्ताचार्य और इतिहासरत्न जैसे पद । कई मिले पर नाम मात्रको आया नहीं जिन्हें मद ॥ अस्सी सहस पुराणों, ग्रंथों का कीना मंथन है । सरस्वती के पुत्र नाहटा जी का अभिनंदन है || (३) प्राचीन इतिहास, आपको, सरस्वती का वर है। जैन अजैन सभी भारत मां हो गई धन्य पाकर ऐसा नन्दन है । सरस्वती के पुत्र (४)
लक्ष्मी, सरस्वती दोनों की कृपा जिनपर भारी । फिर भी सादा वेष और मन है जिनका अविकारी ॥ सरस्वती सेवा को 'काका' जिनका तन-मन-धन है । अगरचन्द नाहटा जी का शत शत अभिनन्दन है ।
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धर्मों की रहती जिन्हें खबर है ॥ नाहटा जी का अभिनन्दन है |
श्रद्धा-सुमन : ११७
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