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अभिनन्दनम्
डॉo मनोहर शर्मा, एम० ए०, पी-एच० डी० श्रेष्ठि-वंश - समुद्भूतः, सरस्वत्या उपासकः । राजस्थान-धरा-रत्नं, सततं साधना - शीलः, पुण्याचार-परायणः । मुनिरूपो गृही चैव, छात्र वर्ग - हिते लीनः सुधी-वृंद- समादृतः । ज्ञान-विज्ञान-योर्धाता, साहित्य- शोधको धीरः, लुप्त-ग्रंथ- प्रकाशकः । सुकृतिस् तत्त्व-मर्मज्ञः, कर्मण्यो धर्म - चेताश्च सदा सर्व-हिते रतः । दिव्यतेजाश् चिरं जीव्याद्, अग्रचंद्रो महामतिः ||५||
विद्या विनय-भूषितः ॥ १ ॥ राग-द्वेष- विवर्जितः ॥२॥ ग्रंथागार - विधायकः ॥३॥ मातृभाषा - सुसेवकः ॥४॥
अभिनन्दन
श्री उदयराज ऊजल
अगरचंद सुकृत 'उदय', सम्पति गृह सरसात । रहे प्रेम सुखशांति जय, सदा धर्म के साथ ॥ १ ॥ अगरचंद सेवा 'उदय', उज्ज्वल राजस्थान । डूबत साहित्य देशको, करत उद्धार महान ॥ २ ॥ भासा राजस्थानकी, राजसथानी नाम । को कुबुधी मेहण करें, रुख पाले श्री रांम ॥ ३॥ मातर भासा मूल, जीवारी रजथानरी । तूट पत्रा तूल, धनपंतां दिस ही धरौ ||४|| आपर जाय अनेक, धनबंता रजपट धरा | अगरचंद तूं अंक, तारकभासा मातरी ॥५॥ बांगड़ सम ब्रह लाह, धनवंता आया धरा । इवे गता अहलाह, साहितरी सेवा बिना ॥ ६ ॥ वीकांणौ विदवांन, अकठ कीधा ईसवर । मातरभासा मांन, इसां सपूतां आसरे ॥७॥ आवे लहर अनेक, दाहण भासादेसरी | हरे सुमेर नहेक, नरां अगरचंद नाहटी ||८||
अभिनन्दन
श्री प्यारेलाल श्रीमाल 'सरस'
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श्री शारदा दोनों मिलकर करती जिसका अभिनन्दन |
वन्दन ॥
अमृत- सागर ज्ञान - सुधाकर अगरचन्दजी कौ गरिमा तुम साहित्य क्षेत्र की जैन-जगत के गौरव तुम । रत्न देश के विद्यावारिधि, मानवता की सौरभ तुम ॥ चंद्र-किरण सा मृदु शीतल है मनमोहक व्यक्तित्व तुम्हारा । दया दान के परम उपासक वीर-वचन अस्तित्व तुम्हारा ॥ जीवन को है सफल बनाया जन्मभूमि को धन्य किया । नाम अमर कर दिया वंश का मात पिता को धन्य किया ॥ हर्ष हमें शुभ अवसर पाकर करते आज 'सरस' अभिनंदन । टाल सभी अवगुण को तुमने बना लिया निज जीवन चंदन ॥
११६ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन ग्रंथ
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