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श्री नाहटाजी द्वारा लिखित एवं
सम्पादित कतिपय ग्रन्थ
शिखरचन्द्र कोचर अवकाश-प्राप्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, बीकानेर
श्री नाहटाजी द्वारा लिखित एवं सम्पादित ग्रन्थोंकी संख्या साठसे ऊपर है। उनमेंसे कतिपय ग्रंथोंका संक्षिप्त परिचय निम्नलिखित है१. युगप्रधान श्री जिनचन्द्रसरि
यह ग्रन्थ श्री नाहटाजीने अपने भतीजे श्री भंवरलालजीके सान्निध्यमें लिखा है, और विक्रमी संवत १९९२में प्रकाशित हुआ है। मध्य-कालीन भारतीय इतिहास-वेत्ताओंको विदित है कि सम्राट अकबरपर जैनधर्मका प्रभाव पड़ा था। जिन जैनाचार्योंने उसे विशेषरूपसे प्रभावित किया था, उनके नाम हैं-श्री हीरविजयसूरिजी एवं श्री जिनचन्द्रसूरिजी। श्री हीरविजयसूरिजीका जीवन-चरित्र तो मुनि विद्याविजयजी द्वारा कई वर्ष पूर्व काफी खोज-शोधपूर्वक प्रकाशित किया जा चुका था, किन्तु श्री जिनचन्द्रसूरिजीका प्रामाणिक जीवन-चरित्र पर्याप्त ऐतिहासिक सामग्री उपलब्ध न होनेके कारण प्रकाशित नहीं किया जा सका था। इस अभावकी पति इस ग्रन्थके विद्वान् लेखकोंने कई वर्षों के परिश्रम एवं अनुसन्धानसे की है। इस ग्रन्थमें कई चित्रों, फरमान-पत्रों, उत्कीर्ण लेखों तथा अन्यान्य उपलब्ध प्राचीन सामग्रीका समावेश किया गया है, जिससे इसकी उपयोगिता एवं प्रामाणिकता बहुत बढ़ गयी है। इस ग्रन्थके अनुवाद गुजराती एवं संस्कृत भाषाओं में भी प्रकाशित हो चुके हैं। इस पुस्तककी प्रस्तावना प्रसिद्ध गुजराती लेखक स्व. श्री मोहनलाल दलीचन्द देसाईने लिखी है। २. ऐतिहासिक जैनकाव्यसंग्रह
इस ग्रन्थका सम्पादन श्री नाहटाजीने अपने भतीजे श्री भंवरलालजीके सान्निध्यमें किया है और विक्रमी संवत् १९९४ में प्रकाशित हुआ है। इस ग्रन्थकी प्रस्तावना प्रसिद्ध विद्वान् प्रोफेसर हीरालाल जैनने लिखी है। इस ग्रन्थमें बारहवीं शताब्दीसे लेकर बीसवीं शताब्दी तक, लगभग आठ सौ वर्षोंके, ऐतिहासिक जैन-काव्य संग्रहीत हैं, जिनसे जैन-इतिहास तथा भाषाओंके क्रमिक विकासपर पर्याप्त प्रकाश पड़ता है। ये काव्य, अपभ्रंश, प्राकृत, संस्कृत, राजस्थानी, गुजराती आदि भाषाओंमें हैं, जिनके अध्ययनसे इन भाषाओंके विज्ञान तथा व्याकरण आदिको हृदयंगम करनेमें प्रचुर सहायता प्राप्त होती है। कई काव्य रस, अलंकार, पद-विन्यास, भाषा-सौष्ठव, अर्थ-गांभीर्य आदि गुणोंकी दृष्टिसे भी अनुपम हैं जिनके मनन एवं अनुशीलनसे अनिर्वचनीय आनन्दकी प्राप्ति होती है। ग्रन्थके प्रारम्भमें "काव्योंका ऐतिहासिक सार" नामसे विस्तृत भूमिका तथा “संक्षिप्त कवि-परिचय" भी दिये गये हैं, जिनसे इस ग्रन्थकी उपयोगितामें अभिवृद्धि हो गयी है। ३. दादा श्री जिनकुशलसूरि
___ यह पुस्तक श्री नाहटाजीने अपने भतीजे श्री भंवरलालजीके सान्निध्यमें लिखी है और इसका प्रथम संस्करण विक्रमी संवत् १९९६में प्रकाशित हुआ है। खरतर-गच्छमें “दादाजी''के नामसे सुप्रसिद्ध चार महान आचार्य हुए हैं-१. युगप्रधान श्री जिनदत्तसूरिजी, २. मणिधारी श्री जिनचन्द्रसूरिजी, ३. श्री जिनकुशल
जीवन परिचय : १०९
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