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सूरिजी और ४. युगप्रधान श्री जिनचन्द्रसूरिजी । इन चारों महान् आचार्योंके अनेक स्मारक देश के कोने-कोने में विद्यमान हैं और उनमें धर्म-प्राण जनताकी अटूट श्रद्धा है । विद्वान् लेखकोंने यह ग्रन्थ काफी परिश्रमपूर्वक लिखा है और इसकी प्रस्तावना प्रसिद्ध जैन विद्वान् मुनि जिनविजयजी ने लिखी है ।
४. मणिधारी श्री जिनचन्द्रसूरि
यह पुस्तक भी श्री नाहटाजीने अपने भतीजे श्री भँवरलालजी के सान्निध्य में लिखी है और इसका प्रथम संस्करण विक्रमी संवत् १९९७में प्रकाशित हुआ है । इस पुस्तकमें उपर्युक्त चार “दादाजी' में से द्वितीय " दादाजी " का जीवनचरित्र, विद्वान् लेखकों द्वारा उपलब्ध ऐतिहासिक सामग्री के आधारपर वर्णित किया गया है । इसकी प्रस्तावना सुप्रसिद्ध विद्वान् डॉ० दशरथ शर्माने लिखी है ।
५. युगप्रधान श्री जिनदत्तसूरि
यह पुस्तक भी श्री नाहटाजीने अपने भतीजे श्री भँवरलालजी के सान्निध्य में लिखी है और इसका प्रथम संस्करण विक्रमी संवत् २००३ में प्रकाशित हुआ है । विद्वान् लेखकों द्वारा उपर्युक्त चार " दादाजी " मेंसे प्रथम " दादाजी' का चरित्र-चित्रण इस ग्रन्थमें विशेष खोज - शोध एवं परिश्रमपूर्वक किया गया है। इस ग्रंथ की प्रस्तावना सुप्रसिद्ध जैन लेखक मुनि कान्तिसागरजी ने लिखी है ।
६. ज्ञान-सार-ग्रन्थावली
इस ग्रन्थका सम्पादन श्री नाहटाजीने अपने भतीजे श्री भंवरलालजी के सान्निध्य में किया है, और इसकी प्रथमावृत्ति वीर - संवत् २४८५ में प्रकाशित हुई है । उन्नीसवीं शताब्दी में योगिराज ज्ञानसार नामक एक महान संत हो गये हैं, जिनका साधारण जनतासे लेकर राजा-महाराजाओं तकपर बड़ा प्रभाव था और जिन्होंने उस प्रभावका उपयोग अपनी व्यक्तिगत स्वार्थ सिद्धि के लिए नहीं, किन्तु सर्व साधारण के लाभ के लिए किया था । विद्वान् सम्पादकोंने इस ग्रन्थके द्वारा इन महान् संतकी जीवनी कई वर्षके परिश्रम और छानबीनके पश्चात् प्रस्तुत की है और उनकी विशिष्ट आध्यात्मिक रचनाओंको प्रकाशित किया है। इस ग्रन्थकी प्रस्तावना प्रसिद्ध विद्वान् स्व० राहुल सांकृत्यायनने लिखी है । इस ग्रन्थके प्रारम्भमें योगिराज श्रीमद्ज्ञानसारजीके व्यक्तित्व एवं कृतित्वका ११२ पृष्ठों में विस्तृत परिचय, विद्वान् सम्पादकों द्वारा दिया गया है ।
७. बोकानेर जैन लेख संग्रह
श्री नाहटाजीने कई वर्षोंके अनवरत परिश्रमसे बीकानेर एवं जैसलमेर के तीन सहस्रसे अधिक अप्रकाशित लेखोंका संग्रह किया और उन्हें अपने भतीजे भँवरलालजी के सान्निध्य में वीराब्द २४८२ में विस्तृत भूमिकादि सहित इस बृहदाकार ग्रंथके रूपमें प्रकाशित किया । इस ग्रंथ में नवमी - दशमी शताब्दीसे लेकर वर्तमान काल तक के लेखोंका संग्रह किया गया है जिससे तत्कालीन इतिहास पर अपूर्व प्रकाश पड़ता है । इस ग्रंथ के रूपमें इस ग्रंथ के विद्वान् सम्पादकोंने भारतीके भण्डारमें एक अनुपम रत्न प्रस्तुत किया है और एतद्विषयक अनुसंधान-कर्ताओंका सुन्दर मार्ग-दर्शन किया है। इस ग्रंथका प्राक्कथन प्रसिद्ध विद्वान् डॉ० वासुदेवशरण अग्रवालने लिखा है । इन लेखोंसे बीकानेरके प्रामाणिक जैन इतिहासके अतिरिक्त तत्कालीन जैन स्थापत्य कला, मूर्ति - कला तथा चित्र कलापर भी पर्याप्त प्रकाश पड़ता है । इन लेखोंके द्वारा हमें अनेक स्थानों, राजाओं, गच्छों, आचार्यों, मुनियों, श्रावक-श्राविकाओं, जातियों आदिका परिचय मिलता है और तत्कालीन रीति-रिवाजों, उपासना पद्धतियों तथा धार्मिक, सामाजिक एवं राजकीय परिस्थितियोंका विशद ज्ञान प्राप्त होता है । उदाहरणार्थ, भूमिकाके पृष्ठ ८७ से ९३ तकपर सचित्र विज्ञप्ति-पत्रोंका वर्णन किया गया है, जिनके अवलोकनसे तत्कालीन सामाजिक, राजनैतिक एवं सांस्कृतिक परिस्थितियों का भलीभाँति
११० : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन ग्रंथ
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