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________________ गार होगा चेला सपूतोंकी मालकी एक गद्दीधर को रहेगी अगर कपूताई करेगा दीक्षा लजावेगा तदारक पंच तथा कमेटी करेगी सं० । १९।५४ । वै० शु० । ५ ॥ -बी० जै० ले० सं०, पृ० ३६० इन जैनलेखोंसे कतिपय ये तथ्य मुखरित होते है : १. तत्सम शब्दोंके साथ देशज शब्दोंका प्रयोग । २. तत्कालीन शासकोंका प्रशस्ति-गान । ३. युगीन साधु-सन्तोंके प्रति आभार-प्रदर्शन । ४. सम्बन्धित धामिक महापुरुषोंका उल्लेख । ५. देवालयोंमें मूर्ति स्थापना करनेवालोंके नाम आदिके साथ परिवारकी संक्षिप्त चर्चा । ६. गोत्र-वंशादिका उल्लेख । ७. धार्मिक कृत्योंकी प्रेरक प्रशंसा । ८. धर्म कार्योंको करानेवाले पंडितों एवं आचार्योंकी नामावली । ९. युग-परिवर्तनके साथ भाषा-शैली आदिमें परिवर्तन । १०. तिथि संवत् आदिका उल्लेख । ११. परमपूज्य उस तीर्थंकरका नामोल्लेख जिसका बिम्ब स्थापित किया गया है। १२. देवालय-भवन प्रणेता एवं मूर्तिकार आदिके पूर्ण नाम पता आदिकी चर्चा । १३. विविध गच्छोंकी चर्चा । १४. उपाश्रय, धर्मशाला, मंदिर, ज्ञानशाला, औषधालय आदिसे सम्बद्ध लेखोंमें सार्वजनिक उपयोगार्थ शोंका उल्लेख एवं प्रबन्धकोंकी नियक्ति आदिकी नियमावली। १५. विश्वकल्याणकी भावनाका सर्वत्र उल्लेख आदि आदि । इस प्रकार श्री अगरचंदजी नाहटाने इन लेखोंका संग्रह करके एक ऐसे अभावकी पूर्ति की है, जो इतिहासके उन पृष्ठोंको प्रामाणिक सिद्ध करेगा जिनके सम्बन्धमें समय-समयपर कई शंकाएँ प्रदर्शित की गयी हैं तथा आज भी उठायी जाती है। १०८ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रंथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012007
Book TitleNahta Bandhu Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages836
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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