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पाया जाता है । जैनाचार्योके नाम प्रायः सब संस्कृत में हैं, किन्तु गृहस्थ स्त्री-पुरुषोंके नाम जिन्होंने जिनालय और मूर्तियोंको प्रतिष्ठापित कराया, अपभ्रंश भाषामें हैं । ऐसे नामोंकी संख्या इन लेखोंमें लगभग दस सहस्र होगी। यह अपभ्रंश भाषाके अध्ययनकी मूल्यवान् सामग्री है।
उदाहरणके रूपमें यहाँ कुछ जैनलेख प्रस्तुत हैं जो स्वयं युगीन तथ्योंको प्रकट रहे है
६०॥ सं० १३३४ वर्षे वैशाख सुदी १० श्री वृहद् गच्छे श्री धर्कट वंशे सा० देवचंद्र भार्या वर्णासरी पुत्र सा० वानरेण भार्या लाडी पुत्र खेता तथा देदा पिथि मसीहु चांगदेव प्रभृति कुटुंब सहितेन पूर्वज श्रेयसे श्री पार्श्वनाथ बिबं कारिता प्रतिष्ठितं च श्री जयदेवसूरि शिष्यैः श्री माणदेव...' (सूरिभिः) [१८५]
-बी० ० ले० सं०, पृष्ठ २२
(२) सं० १५२५ वर्षे फागुण सुदी ७ शनौ नागर ज्ञातीय श्रे० रामा भा० शणी पुत्र नगाकेन भा० धनी पु. नाथा युतेन श्री अचल गच्छे श्री जयकेसरि सुरीणामुपदेशेन श्री श्रेयांसनाथ बिंबं का० प्र० श्री सूरिभिः (१०४५)
-बी० जै० ले० सं०, पृष्ठ १२८
॥सं० १६६४ प्रमिते वैशाख सुदि ७ गुरु पुष्ये राजा श्री रायसिंह विजयराज्ये श्री विक्रमनगर वास्तव्य श्री ओसवाल ज्ञातीय गोलवच्छा गोत्रीय सा० रूपा भार्या रूपादे पुत्र मिन्ना भार्या माणिकदे पुत्ररत्न सा० वन्नाकेन भार्या वल्हादे पुत्र नथमल्ल कपूरचन्द्र प्रमुख परिवार सश्रीकेन श्री श्रेयांस बिबं कारित प्रतिष्ठितं च । श्री बृहत्खरतर गच्छाधिराज श्री जिनमाणिक्यसूरि पट्टालंकार (हार) श्री साहि प्रतिबोधक । युगप्रधान श्री जिनचंद्रसूरिभिः ।। पूज्यमानं चिरं नंदतु।। श्रेयः । (११५४)
-बी० ० ले० सं०, पृष्ठ १४४
अथ शुभाब्दे १९२४ शाके १७७९ चैतन्मिते ज्येष्ठ मासे शुक्ल पक्षे पंचमी तिथौ गुरुवासरे। श्री मत्बृहत्खरतर गच्छे । जं यु । भ । प्र। श्री जिनसौभाग्यसूरीश्वराणामाज्ञया श्री। कीतिरत्नसूरिशाखायां उ । श्री अमृतसन्दरगणिस्तच्छिष्य वा । श्री जयकीर्तिगणिस्तच्छिष्य पं० प्र० प्रतापसौभाग्य मुनि स्तदंतेवासिना पं० प्र० सुमतिविशाल मुनिनाऽयं शुभोपाश्रयःकारितः पं० समुद्रसोमादि हेतवे । बीकानेर पुराधीशः राजेश्वरः शिरोमणिः श्री सरदार सिंहाख्यो नृपो विजयते तराम् ? यावन्मेरुमही मध्ये चाम्बरे शशिभास्करौ। तावत्साध्वालयश्चेषश्चिरं तिष्ठतु शर्मदः ।२। कारीगर सूत्रधार । भीखाराम । श्री (२५४७) -बी० जै० ले० सं०, पृष्ठ ३५८
महोपाध्याय रामलालजीके उपाश्रयका लेख----
(२५५३)
॥ ॐ। ह्रीं। श्री। नमः ।। ब्रह्मा विष्णु शिव शक्ति आदि स्वरूप श्री ऋषभ वीतरागायनमः दादासाहिब श्री जिनकुशलसूरि संतानीय क्षेमधाड़ शाखायां श्री साधु महाराज पं० । प्र । श्री युक्तिवारध रामलाल ऋद्धिसार मुनिना ओसवाल माहेश्वरी अग्रवाल ब्राह्मणादि समस्त बीकानेर वास्तव्य प्रजाके कुष्ट भगंदरादि अनेक कष्ट मिटाय कर वे विद्याशाला तथा ज्ञानशाला स्थापना करी है, इसमें सर्व मतोंके पुस्तकका भण्डार स्थापन करा है, इसमें ऐसा नियम किया गया है कि पुस्तक तथा विद्याशाला कोई लेवेगा या बेचेगा सो सर्वशक्तिमान परमेश्वरसे गुनह
जीवन परिचय : १०७
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