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________________ जीवन है । आपका भी विवाह एक सुशिक्षित व धर्मशीला महिलासे सम्पन्न हुआ है। एक सुन्दर-सा पुत्र आपकी गोदका श्रृंगार है। इसी छोटेसे परिवारके साथ भंवरलालजी पर्याप्त संतुष्ट रहते हैं। भाग्यकी विडम्बनाने कभी भी इन्हें निराश नहीं किया। जन्म लेने, परिवार सृजन करने व उसके पालन करनेकी विशेष चिन्ता आपको कभी नहीं हुई। एक छोटे सुन्दर सौम्य ढंगसे सजे हुए अपने शान्त कुटीरमें आपका ६२वा वर्ष व्यतीत हो रहा है। परिवार सजग है, धर्म सजग है और सजग है आपका कर्तव्य । रीति-नीति परम्परायें आपको अतीतसे जोड़ जाती हैं। साहित्यानुराग व सामाजिक पुकार आपको वर्तमानसे संलग्न कर रखे हैं और भविष्य मुक्तिके संदेशसे आपको विश्वस्त कर जाता है। अवकाशके आवश्यक क्षण लेखन अध्ययन आदिमें व्यतीत होते हैं । पंचप्रतिक्रमण, जीव-विचार, नवतत्त्व, आगमसार, पैतीस बोल थोकड़ा आपकी आस्थाके मनन चिन्तन तो बचपनमें पड़े हुए है। इन्हें अपने भाइयोंका भी आदर सम्मान व सहयोग प्राप्त है। श्री हरखचन्दजी तो व्यक्ति नहीं, मानवरूपमें एक दैवीशक्ति व शीलसे विभूषित दुर्लभ प्राणी हैं । जो भी व्यक्ति एक बार उनके सम्पर्क में आया इस कथनको अत्यक्ति न समझेगा, ठीक ऐसे ही विमल बाबू भी है । सभी सुखी सम्पन्न व समृद्ध हैं । अन्तमें जैसा मैंने लिखा है किसी भी व्यक्तित्वके मल्यांकनके लिए जितनी दष्टि अपेक्षित है उसके मानदंडकी जितनी विभिन्न विधायें है । मेरा अपना आकलन पूर्ण है, मैं स्वीकार नहीं कर सकता । वशिष्टजीकी बुद्धिमहासागरके समान भरतजीके व्यक्तित्वकी महिमाके तीरपर अबलाकी तरह खड़ी जैसे नौके व तटका चिन्ह नहीं पा सकी उसी प्रकार कोई भी चिन्तक इस महान गम्भीर व्यक्तित्वकी थाह नहीं पा सकता। मैंने तो न्यूटनकी तरह इस ज्ञानगरिमाके सागर तटपर बच्चोंकी तरह खेलते हुए कुछ कंकडिया ही बटोरी हैं । हर तरंगोंको पहचाननेकी शक्ति भला तटपर खड़े रहनेवाले कायरको कैसे सुलभ हो सकती है ? मैं तो मात्र सीपीसे सन्तुष्ट हूँ; डूबनेकी शक्ति नहीं, फलतः मोतीकी आबका दर्शन ही कैसे होगा? यह भार तो मैंने सक्षम व साहसी व्यक्तियोंपर ही छोड़ दिया है । पाठकोंकी जिज्ञासायें और अधिक जाननेकी होंगी पर उनसे मेरा विनम्र निवेदन होगा कि इनकी कृतियोंके माध्यमसे इन्हें जाननेका प्रयास करेंगे। एक बात मैं कि भंवरलालजीने वही किया है तो इनकी चेतनाने स्वीकृति दी है और वह करेंगे जिसे इनका अपना निर्मल मन स्वीकार करेगा । इनमें अब भी कुछ कर गुजरनेकी साध है और ६२ वर्षकी अवस्थामें भी इनमें Animal Spirit का अभाव नहीं है । अतः कुछ नवीन, कुछ सुन्दर, कुछ सत्य तथा कुछ शिव देखने, समझने, व ग्रहण करनेकी हमारी कामनायें प्रतीति अवश्य चाहेंगी। परमात्मा आपको चिरायुष करें। जैन समाज कृतज्ञ होगा, सुजनको गति मिलेगी और साहित्य व समाज आपकी अमरतापर गर्व करेगा। शेष अचिन्त्य है, और शास्त्र कहता है "अचिन्त्या खलु ये भावाः न तांस्तर्केण योजयेत् । सुतराम् ! "ज्ञाने गतिर्मतिर्भावे बुद्धिर्लोकारंजने । संसिद्धिस्तेन श्रीवृद्धिरायुविद्या यशो बलम् ॥” इत्यलम् जीवन परिचय : १०३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012007
Book TitleNahta Bandhu Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages836
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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