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ट्रस्टी - जैनभवन, कलकत्ता
ट्रस्टी - जैनभवन, पालीताना,
सम्पादक कुशल निर्देश, ( मासिक पत्रिका)
अपने आठ वर्षोंके सम्पर्कके फलस्वरूप श्री भंवरलालजी के व्यक्तित्वकी जो छाया मुझपर पड़ी है, मैंने शब्दोंकी परिधि में बाँधनेकी यथासम्भव चेष्टा की है, पर भिन्न रुचि भिन्न चिन्तनप्रणाली, प्रमाद या अज्ञानवश यदि असमर्थ रहा हूँ तो वह क्षम्य मानी जानी चाहिये ।
संक्षिप्त जीवन-परिचय
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हमउम्र रहे हैं
भँवरलालजी का जन्म संवत् १९६८के आश्विन महीनेके कृष्णपक्षकी द्वादशीको हुआ है। परम साध्वी, सुशीला, श्रीमती तीजाबाईकी गोद में इनका लालन-पालन हुआ । पिता श्री भैरूदानजी एक कर्मठ व्यवसायी, लोकप्रिय तथा धार्मिक प्रकृतिके व्यक्ति थे । अध्यवसाय उनका लक्ष्य था और जीवन पवित्र । फलतः पुत्रकी भावनाओंमें कभी अन्तर नहीं आ पाया। वैसे पूरा का पूरा नाहटा परिवार एक अपनी पूज्य परम्परा रखता है । केवल उदरपूर्ति व भोगविलासको कामनासे धनोपार्जन इस परिवारकी चेष्टा नहीं रही । तपःपूत चरित्र, धार्मिक निष्ठा तथा सतत प्रयास जिनका विकास श्री भँवरलालजी में क्रमशः हुआ इनके व्यक्तित्वकी समय-शिलापर चित्र बनता गया। जैन शिक्षालय बीकानेर में ही आपका विद्यारम्भ मुहूर्त हुआ पर शिक्षा इन्हें मात्र ५वीं कक्षा तक मिली। चाचा अभयराजजी, जिन्हें संसार प्रिय नहीं लगा, स्वर्ग सिधार गये, आपको संयम व व्रतकी शिक्षा दे गये । फलतः होश संभालनेके साथ ही जैनशासनकी विभिन्न साधनाओं में आपका मन रमने लगा, जिसका क्रम हम आज भी यथावत् पाते हैं अध्ययनकी रुचि आपको श्री अगरचन्दजी काकाजीसे मिली। दोनों ही महानुभाव प्रायः लेकिन पूज्य पूजककी भावना यथावत् है। मर्यादाने आँखकी शर्मका शान बनाये रक्खा है। व्यापारिक उत्थान-पतनकी चिन्तासे दूर भावनाओंके संसारमें खुले पंस उड़ने की अनन्त कामना इन शरद्पुत्रोंको सशक्त बनाये रखे है पूज्य माताजीका प्यार कुछ समय तक ही मिल पाया था क्योंकि उनकी पुकार आ गयी थी । पिताश्रीने तीन विवाह किये थे आप द्वितीय पत्नीकी देन है। माताजी की मृत्युके पश्चात् १० वर्ष बाद आप श्री लक्ष्मीचन्दजी की गोद चले गये । आपको पूरे परिवारका स्नेह सुलभ रहा । १४ वर्षकी अवस्था में आपका शुभ पाणिग्रहण संस्कार सं० १९८३की मिती आसाढ़ बदी १२को श्री रावतमल सुराणाकी सोभाग्यवती कन्या श्रीमती जतन देवी के साथ सम्पन्न हुआ । आपके दो पुत्ररत्न श्री पारसकुमार और पदमचन्द तथा दो सुशीला पुत्रियाँ श्रीकान्ता तथा चन्दकान्ता है। पुत्रियां अपने सम्पन्न घरोंमें पुत्र धन-धान्य पूर्ण सुखमय जीवन व्यतीत कर रही हैं और प्रथम पुत्र श्री पारसकुमार, जो मेरे एक घनिष्ठ मित्रोंमें है, कुशल व्यवसायी, शुद्ध व्यावहारिक शान्त पर गम्भीर व्यक्तित्वसे समन्वित तथा वर्तमान युगकी उच्चतम शिक्षा, एम० काम० एल० एल० बी० की उपाधि से विभूषित योग्य नवयुवक हैं। इनमें सामाजिक व नैतिक मर्यादा है, व्यक्तित्वको परखने की अपनी दृष्टि है । समय, समाज व परिस्थितियोंके साथ गतिशील होनेकी शक्ति है । साहस है और है एक आत्मबोष, जिसमें संतुष्टिके समापनकी विचित्र शक्ति संनिहित है । कर्तव्य इनका लक्ष्य है और सिद्धि इनकी प्रेरणा । वर्तमान इनसे संतुष्ट है और ये वर्तमानसे संतुष्ट । फलतः भविष्य इनका अपना है। इनकी आकांक्षायें इनके प्रयत्नकी सीमाओंमें ही शरण पाती हैं। आप अपनी प्रिय पत्नी और अपने चार पुत्रों तथा एक पुत्री के साथ सुखी है प्रिय श्री पदमने बी० एस-सी० तक अध्ययन क्रम जारी रखा, आजकल पिताजीके साथ व्यवसाय में संलग्न है। नितान्त इन्ट्रोवर्टी, कर्मठ शान्त व सुशील
परिवारकी मर्यादाके अनुकूल इनका
१०२ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन ग्रंथ
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