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________________ इस प्रकार अनेकानेक संस्मरण आपके सान्निध्य में मुझे सुनने को मिले हैं जिन्हें अंकितकर अपने विषय को बढ़ाना उचित नहीं समझता । गद्दोपर बैठकर क्षण में पुस्तकावलोकन, प्रतिलिपिकरण, निबन्धलेखन, तथा क्षणमें व्यापारिक सम्बन्धोंका रक्षण व पोषण न जाने कितनी बार देखा हैं । कोई आयाम नहीं, प्रयास नहीं, स्वाभाविक गति से लेखनी बहीखातोंपर चलते-चलते साहित्यिक लेखनमें व्यस्त हो जाया करती है । धन भी है धर्म भी, ज्ञान भी है विवेक भी, राग भी है विराग भी कितनी समरसता है एकरसतामें भी, आश्चर्य होता है । नामकी भूख नहीं, केवल कर्तव्यको प्रेरणा है । सम्भवतया इसीलिये इनकी सज्जनताका फायदा उठाने वाले कितने ही मान्य विद्वानोंने इनकी कितनी अज्ञात कृतियोंको अपने सन्मानका विषय बनाया है । प्रसंगवश एक उदाहरण देनेमें मुझे संकोच नहीं है। प्रसिद्ध प्राच्य विद्या विशारद पुरातत्त्ववेत्ता डॉ० वासुदेवशरण अग्रवाल, जो आप लोगोंके लिए एक गर्वका विषय थे, इनके साहित्य के समर्थक व सहायक भी, श्री भँवरलालजी की दो कृतियाँ - "कीर्तिलता" तथा " द्रव्यपरीक्षा" के स्वाथ न्याय नहीं कर सके । अवधी भाषाकी कृति, कीर्तिलताका अनुवादकर भँवरलालजीने डॉ० साहबको देखनेके लिए भेजा था, पर अग्रवाल साहबने इनके नामका सन्मान ही रहने दिया । यही बात पुरातत्त्वसम्बन्धी द्रव्यपरीक्षाके विषय में भी कथ्य है । इस अमूल्य ग्रन्थके आधारपर उन्होंने अंग्रेजीमें लेखबद्धकर अपने नामसे छपा डाला । उनके दिवंगत होनेपर शायद ये दोनों पुस्तकें बीकानेर संग्रहालय में सुरक्षित रखी गई हैं, जिसे उनके पुत्रने लौटाई हैं । शायद विज्ञापन ही व्यक्तित्वकी सच्ची परख है और इनके पास विज्ञापन नहीं । आप अगरचन्दजीके अनुरोधके वशंवद है । इन्हें जो कुछ भी सामाजिक - साहित्यिक सम्मान मिला है, काकाजीकी ही कृपाका फल है ऐसी इनकी आत्मस्वीकृति है । भँवरलालजी का जीवन सीधासादा है । आपका अन्तर जितना निर्मल व पवित्र है उतना ही व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन भी । धोती, कुर्ता तथा पगड़ी यही सामान्य परिधान है । व्यवहारकुशल, वाणी सुखद, जीवन कर्मठ और कृति सुन्दर । यही कारण है कि सामाजिक, धार्मिक व सांस्कृतिक सभाओं, सभ्य व संस्कृतविचारगोष्ठियों व अन्यान्य संस्थाओंसे आपका जीवन सम्बन्ध है । ऐसे ही पुरुषोंके लिए शायद यह उक्ति चरितार्थ है— "काव्यशास्त्रविनोदेन कालो गच्छति धीमताम् विषम परिस्थिति में धैर्य आपकी विशेषता है, धन है, यश है, पर अभिमान नहीं, अभिरुचि नहीं, कोई व्यसन नहीं, भाषणपटुता और लेखनसिद्धिका विचित्र समायोग है । अतः भर्तृहरिजी के शब्दों में आप महान् आत्माओं की उक्त सिद्ध प्रकृतिके प्रतीक हैं । लोकमंगलकी लालसा है, पर - जन्म के कृतार्थकी कामना है । हृदयमें विश्वास है और परमशक्तिमानमें श्रद्धा तथा भक्ति है । व्यतीत आपकी स्मृतिमें है और सजग वर्तमान हाथोंमें, फिर नियतिके लिए अधिक चिन्ता नहीं । जैनधर्म, जैनसाहित्य, जैनसभा, जैनसम्मेलन आपके बिना अपूर्ण हैं । आपके सार्वजनिक जीवनके लिए इतना ही कहना पर्याप्त है । निम्नांकित सम्मानित पद कथनकी पुष्टि करेंगे । अध्यक्ष — जैनभवन, कलकत्ता मंत्री - श्री जिनदत्तसूरि सेवासंघ मंत्री - राजस्थानी साहित्य परिषद् मंत्री - श्री जैन श्वेताम्बर उपाश्रय कमेटी, ट्रस्टी - श्री जैन श्वेताम्बर पंचायती मंदिर, कलकत्ता Jain Education International For Private & Personal Use Only जीवन परिचय : १०१ www.jainelibrary.org
SR No.012007
Book TitleNahta Bandhu Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages836
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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