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श्रेष्ठिवर श्री अगरचंदजी नाहटा और उनकी साहित्य - साधना प्रो० श्रीचन्द जी जैन, एम० ए० एल-एल० बी०
एक विशिष्ट व्यक्तित्व
लक्ष्मीपुत्र होकर भी श्री नाहटाजीने अपने जीवनको साहित्यसाधनामें लीन किया तथा भगवती सरस्वती के श्रीचरणों में स्वयम्को निष्कामभावसे समर्पित कर एक ऐसा उदात्त आदर्श उपस्थित किया जो व्यापक दृष्टि से शिक्षितोंको प्रभावित कर रहा है । अध्ययन-शीलता किस प्रकार सामान्य शिक्षाप्राप्तको गहन मनीषी बना सकती है - इस तथ्यको प्रमाणित करने के लिए विद्यावारिधि श्री नाहटाका जीवन-चरित्र पर्याप्त है । श्री नाहटा स्वयं एक संस्था हैं, जिसके प्रांगण में बैठकर हजारों शोधस्नातकोंने अपनी साधनाको सफल बनाया है तथा साहित्य - जिज्ञासुओंने निज कामना की पूर्ति की है और आज भी कर रहे हैं ।
उदार दृष्टिवाले होनेके कारण श्री नाहटाका ज्ञानमंदिर सबके लिए खुला हुआ है। ज्ञान-पिपासु यहाँ सुगमता से प्रवेश पा सकता है । तन, मन और धन इन तीनोंका समन्वयात्मक सहयोग श्री नाहटा के श्री नाहटा विशाल ज्ञान- देवालय में निरन्तर द्रष्टव्य है । कहा जाता है कि "अतिपरिचयादवज्ञा सन्ततगमनादनादरो भवति" - मान घटे नितके घर आए लेकिन इस शोधमनीषीका सतत साहचर्य अनादरके स्थान पर आदर प्रदाता कहा गया है ।
पूर्णरूपसे सम्पन्न परिवारके मध्य में रहते हुए श्री नाहटाजीकी साहित्यिक साधना अबाधगति से चल रही है एवं आपके गहन अध्ययन तथा चिंतनने आपको मनीषियोंकी प्रशस्त श्रेणी में समादृत कर दिया है। ऐसी स्थिति में निम्न कथन कहाँ तक सिद्धान्ताचार्य श्री नाहटाके सम्बन्धमें लागू हो सकेगा, यह विचारणीय है । यस्यास्ति वित्तं स नरः कुलीनः स पण्डितः स श्रुतवान्गुणज्ञः । स एव वक्ता स च दर्शनीयः सर्वे गुणाः काञ्चनमाश्रयन्ति ।
धनवान ही कुलीन कहा जाता है तथा वही पंडित; श्रुतवान् और गुणज्ञ होता है एवं वही वक्ता तथा वही दर्शनीय कहा गया है। सत्य तो यह है कि स्वर्णके साथ ही सब गुण रहते हैं । पुरुषार्थ में अटूट श्रद्धा एवं आस्था रखनेवाले श्री नाहटाके कर्मठ गुणवान् बनाया है ।
व्यक्तित्वने ही उन्हें यशस्वी और
साधारण वेश-भूषासे निज शरीरको ढके रहनेवाले श्रेष्ठिवर श्री नाहटा बड़े विनम्र तथा विवेकशील हैं । गोस्वामी तुलसीदासकी निम्न उक्ति आपके संबंध में पूर्णरूपेण व्यवहृत होती है :बरसहिं जलद भूमि नियराए । यथा नवहिं बुध विद्या पाए ।
श्री नाटाकी कर्मसाधना लोक-कल्याणकारी है । वस्तुतः आपका 'स्व' परमें इतना लीन हो गया है कि उसे पृथक् करना अत्यन्त कठिन है ।
लगभग पाँच हजार निबन्धोंको लिखकर जो यश एक समर्थ निबन्धकारके रूपमें श्री नाहटाने अर्जित किया है । उसकी कुछ विवेचनात्मक चर्चा यहाँ की जाती है:
१. भवन्ति नम्रास्तरवः फलोद्गमैर्न बाम्बुभिर्भूरिविलम्बिनो घनाः । अनुद्धताः सत्पुरुषाः समृद्धिभिः स्वभाव एवैष परोपकारिणाम् ॥
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जीवन परिचय : ७९
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