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निबंधकी परिभाषा एवं उसके विविध रूप
मानव अपने विचारोंको प्रकट करने के लिए सदा उत्सुक रहा है। कभी वह अपनी भावनाको पद्य के सहारे व्यक्त करता है तो कभी गद्यको माध्यम बनाकर अपनी सहज अनुभूतियोंको सरस अभिव्यक्ति देता है। समयानुसार इस अभिव्यक्तिके माध्यमोंमें परिवर्तन होता रहा है। एक समय था कि प्रकाशनकी असुविधाओंके कारण इंसानने पद्यको विशेषतः अपनाया और गद्य की ओर कम ध्यान दिया। शनैः शनैः भावाभिव्यक्ति को अनुरंजित करनेके हेतु विविध साधनोंको अपनाया गया और आज निबन्धोंके प्रति प्रत्येक विद्वान्का अधिक आकर्षण देखा जा रहा है । सुगठित रचना निबंध कहलाती है। फिर भी एक व्यापक परिभाषा देना कठिन है । विविध प्रकारोंकी परिभाषाएं देकर मनीषियोंने अपने विचारोंको प्रकट किया है तथा निबंधको कभी व्यापक रूपमें परखा है तो कभी इसे संकुचित रूपमें आबद्ध कर दिया है।
'आचार्य' पंडित रामचन्द्र शुक्ल निबंधको गद्यकी कसौटी मानते हैं और निबंधका चरम उत्कर्ष वहाँ स्वीकार करते हैं जहाँ एक-एक पैराग्राफमें विचार दबा-दबाकर ठसे गए हों और एक-एक वाक्य किसी सम्बद्ध विचार खण्डके लिए हों । स्पष्ट है कि शुक्लजी विचार गाम्भीर्य तथा भाषाकी सामासिकताको तरजीह देते हैं लेकिन बाबू गुलाबरायने स्वच्छन्दता, निजीपन एवं सजीवतापर बल दिया है-निबंध उस गद्य रचनाको कहते हैं जिसमें एक सीमित आकारके भीतर किसी विषयका वर्णन या प्रतिपादन एक विशेष निजीपन, स्वच्छन्दता, सौष्ठव और सजीवता तथा आवश्यक संगति और सम्बद्धताके साथ किया गया हो। निबंधकी इस परिभाषामें आये विशेष निजीपन, स्वच्छन्दता, सौष्ठव, सजीवता सापेक्षिक शब्द हैं और फिर विशेष निजीपन तथा स्वच्छन्दता एक साथ रहें ही यह जरूरी नहीं है । बेकनके निबंधोंमें विशेष निजीपन है लेकिन स्वच्छन्दता नहीं है । इसके साथ ही सीमित आकार भी किसी खास मात्राका बोधक नहीं है । बाबूजीने जो भी सराहनीय बातें एक रचनामें होनी चाहिए वे सब यहाँ रख दी हैं, किन्तु परिभाषा देखने में अच्छी होनेपर भी अस्पष्ट है।
निबंध आज अपने रूढ़ या प्राचीन अर्थोसे निकलकर साहित्यमें एक नये रूपमें प्रयुक्त होने लगा है। परम्परागत अर्थोसे वह भिन्न है। रचना, लेख, प्रबंध सभीका क्षेत्र प्रायः निश्चित है। रचना किसी भी कृतिको कह सकते हैं । अंग्रेजीके कम्पोजीशन और रचनामें प्रायः समानता है । लेख किसी विषयपर लिखे गये निर्वैयक्तिक लघु-निबंधके लिए प्रयुक्त होता है, इसकी तुलना अंग्रेजी 'आर्टीकल' से की जा सकती है । ये कोई भी निबंधका स्थान वहीं ले सकते । निबंध इनसे कई अंशोंमें भिन्न है।
निर्वयक्तिकता निबंधमें संभव नहीं, वह निबंधके अन्तर मनन और आत्मानुभूतियोंका व्यक्त रूप है। प्राचीन संस्कृत परम्पराके अनुसार निबंध केवल बौद्धिक अभिव्यक्तिका माध्यम था । दार्शनिक विश्लेषणोंको निबंधका रूप दिया जाता था। आजके निबंधका वास्तविक अर्थ एवं स्वरूप बदल गया है। तार्किकताको स्थान नहीं रहा। ताकिकताका स्थान सहृदयताने ले लिया है। उसमें व्यक्तित्व, भावों, विचारों तथा अनुभूतियोंका सहज-स्वाभाविक अंकन रहता है, विचारोंका खंडन-मंडन नहीं। अतएव वर्तमान निबंधको अतीतकी स्थापित निबंधोंकी कसौटीपर कसना अनुचित होगा। जीवन-समाजके प्रगतिशील स्वरूपपर हमें ध्यान रखना होगा।
निबंध निर्बध रचनाको विधा है। निबन्धकार स्वच्छन्दतापूर्वक जिस किसी भी विषयपर अपने आन्तरिक विचार बिना किसी आडम्बरके व्यक्त करता है। आत्मीयता, सरलता, अनुभूति प्रवणताकी प्रधानता रहती है । न उसपर कोई नियंत्रण है और न निषेध ।"२ १. डॉ. मोहन अवस्थी-हिन्दी साहित्यका अद्यतन इतिहास, पृष्ठ १४७ । २. डॉ० गंगाप्रसाद गुप्त-हिन्दी साहित्यमें निबंध और निबंधकार, पृष्ठ ४-५ । ८० : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रंथ
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