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प्रवर्तक श्री हीरालालजी महाराज
के कर-कमलों में समर्पण
आगमज्ञाता महा मनस्वी, गुण - रत्नों के आगर हो। दीप्तिमान शासन के तारे, दया - मया के सागर हो ।
(२) श्रमणसंघ के महा प्रवर्तक, तेजस्वी हो सूर्य समान । बहुश्रु त स्वामी वचन-विशारद, महाब्रती हो धर्म-निधान ।।
कभी सम्मान की जिन्हें तृषा नहीं, विरोध में भी होता हर्ष । जिनकी भावपूर्ण सेवा से, होता जन-जन मन उत्कर्ष ।।
बहुमानार्थ समर्पित करते, ग्रन्थप्रिय . जो अभिनन्दन । चारित्र-आत्मा के चरणों में, कोटि कोटि होवे वन्दन ।
अभिवृद्धि जिनशासन की जो, करते मुनिवर जिन शृंगार । त्रिकाल वन्दना धर्मदेव को, करते अर्पित लघु उपहार ।।
चरण चंचरिक -सुनि रमेश (सि. आ.)
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