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उपाध्याय श्री कस्तूरचन्दजी महाराज के
कर-कमलों में समर्पण
(१) दिव्य तेजवंत सूर्य तिमिर-हर्ता, जग मंगलदाई है। शतशः वन्दन बहुश्रुत मुनि को, ज्ञान ज्योति प्रगटाई है ।।
(२) निर्मल निशाकर नक्षत्रलोक में, दिव्य सुशोभित होता है। त्यों मुनि-मण्डल में बहुश्रुत मुनि, स्व-पर मल को धोता है ।
. (३) सुदर्शन है जम्बू तरु प्यारा, सीता सरिता में अति श्रेष्ठ । मुनियों में है करुणा-सागर, स्थविर गुरु तेजस्वी ज्येष्ठ ॥
(४) ज्यों पर्वत में है सुमेरु, भव्य उच्च अति औषध ईश । "एवं हवइ बहुस्सुए" स्पष्ट बताया है जगदीश ।।
अक्षय रत्नों का स्वामी है, स्वयंभूरमण महासागर । वन्दन शतशः बहुश्रु त मुनि को, महाव्रतधारी रत्नाकर ।।
चरण चंचरीक -मुनि रमेश (सि. आ.)
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