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मालवा के श्वेताम्बर जैन भाषा-कवि २७७ पद्य रचनाओं की तरह राजस्थानी गद्य में लिखी हुयी मालव प्रदेश की कुछ गद्य रचनाएं मिली हैं जिनमें से एक का उल्लेख यहाँ किया जा रहा है।
१६वीं शताब्दी के खरतरगच्छीय मुनि मेरुसुन्दर बहुत बड़े गद्य लेखक हुए हैं। उन्होंने मांडवगढ़ में रहते हुए कई जैन ग्रन्थों की भाषा टीकाएँ 'बालावबोध' के नाम से लिखी हैं जिनमें से 'शीलोपदेशमाला बालावबोध' सम्बत् १५२५ में मांडव दुर्ग के श्रीमाल जातीय संघपति धनराज की अभ्यर्थना से रचा गया है। यथा---
श्री मेरुसुन्दर गणेगुणभक्ति परायणः । नाना पुण्यजनाकीर्णे दुर्गे श्री मांडपाभिधे ॥ उदार चरित खयात श्रीमाल ताति सम्भवः । संघाधिप धनराजो विजयो सति दया पर ।। तस्याभ्यर्थनया
भव्यजनोपकृतिदेतवे। शीलोपदेश मालाया बालावबोधो मया रचितः ।। तत्व५२ व्रत चंड'मिते वर्षे हर्षेण मेरुणा रचितः ।
तावन्नन्दतु सोज्यं भाव जिन वीर तीर्थमिदं ।। मांडवगढ़ में १६वीं शताब्दी में काफी जैन मंदिर थे। उन मंदिरों का विवरण खरतरगच्छीय कवि खेमराज ने मंडपाचल चैत्य परिपाटी में दिया है । २३ पद्यों की इस ऐतिहासिक रचना को मैं प्रकाशित भी कर चुका हूँ। आदि अन्त के पद्य नीचे दिये जा रहे हैं जिसमें इसे 'फाग बंधी' शैली में रचे जाने का उल्लेख किया है।
पास जिणेसर पय नमिय, कामिय फल दातारो। फाग बंधिहउं संथुणिसु, जिणविर बिंब अपारो ।। इणिपरि चैत्य प्रवारी रची मांडवगढ़ि हरि सिद्धि। संचीय सुकृत भंडार सुगुरु सोमधर्मगणि सीसिहि ।। फाग बंधि जे पुण्यवंत नारी नर गावई।
खेमराज गणि भणई तेई यात्रा फल पावई ।। मालव प्रदेश ने अनेक जैन आचार्यों, मुनियों कवियों तथा धनीमानी श्रावकों को जन्म देने का श्रेय प्राप्त किया है। उन सबकी खोज की जाय तो एक बड़ा शोध प्रबन्ध तैयार हो सकता है। केवल एक मांडवगढ़ के जैन इतिहास की भी इतनी बड़ी सामग्री प्राप्त है कि उस पर भी महत्वपूर्ण शोध-प्रबन्ध लिखा जा सकता है। डा० सुभद्रादेवी क्राउभे ने मांडवगढ के जैन इतिहास की अच्छी सामग्री इकट्ठी की थी। और कुछ लेख भी लिखे हैं, पर वे शोध प्रबन्ध का काम पूरा नहीं कर सकी हैं। वे अब काफी वृद्ध हो चुकी हैं अत: उनकी संग्रहीत सामग्री ही उनसे प्राप्त करके यदि प्रकाशित करदी जाय तो कोई भी व्यक्ति उस पर शीघ्र ही शोध प्रबन्ध तैयार कर सकेगा। मांडवगढ़ के महान् साहित्यकार मंत्री मंडन तथा मंत्री संग्रामसिंह एवं जावड आदि सम्बन्धी मेरे भी कई लेख प्रकाशित हो चुके हैं। इसी तरह धारा नगरी के जैन इतिहास और साहित्यकार सम्बन्धी मेरा लेख कई वर्ष पूर्व प्रकाशित हो चुका है।
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