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मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ
११. सम्वत् १७३० के विजयदशमी गुरुवार को मालवा के शाहपुर में 'सती मृगांक लेखारास' तपागच्छीय कवि विवेक विजय ने चार खण्डों वाला बनाया । उसमें ३५ ढालें हैं ।
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रास गायो रे ।
श्री वीर विजय गुरु सुपसायो, मृगांक लेखा श्री ऋषभदेव संघ सानिद्धे, सरस सम्बन्ध सवायो रे । सुखीयाने सुणंता सुख वाद्धे, विरह टले विजोगो रे । विवेकविजय सती गुण सुण्यां पांगे वंछित भोगा रे । सम्वत सतरंत्रीवा (१७३०) वरषें, विजय दशमी गुरुवार रे । साहपुर सो भीत मालवे रास रच्यो जयकार रे । १२. सम्वत् १७१८ के वैशाख सुदी १० को भोपावर में शान्तिनाथजी के प्रसाद तपागच्छीय कवि श्री मानविजय ने नव तत्व रास बनाया जो १५ ढालों में है ।
सम्वत सतर अठारई, वैशाख सुदि दशमी सार । श्री शान्तीसर सुदसाय, पुर भोपावर मांहि ॥
मालवा प्रदेश में कतिपय जैन तीर्थ भी हैं जिनमें मगसी पारसनाथ श्वेताम्बर एवं दिगम्बर दोनों सम्प्रदायों के मान्य हैं । श्वेताम्बर सम्प्रदाय के अनेक कवि जिन्होंने इस तीर्थ की यात्रा की थी उन्होंने यहाँ के पार्श्वनाथ के कई स्तुति - काव्य बनाये हैं । उनमें से विजयगच्छीय श्री उदयसागरसूरि रचित 'मगसी पार्श्वनाथ स्तवन' की कुछ पंक्तियाँ नीचे दी जा रही हैं
इस पाससामी सिद्धि गामी, मालव देसईं जाणीयइ | मगसिय मंडण दुरित खंडण, नाम हियडइ आणीयई । श्री उदयसागर सूरि पाँय प्रणमइ अहनिस पास जणंद अ । जिनराज आज दया दीठ तु मन हुवई आणद अ । पृष्ठ ५३० में सुबुद्धि विजय के मगसीजी पार्श्व १० भव स्तवन का विवरण जै० गु० का० भा० ३ में है ।
कई रचनाओं का रचना स्थान संदिग्ध है जैसे १५वीं शताब्दी के अन्त या १६वीं शताब्दी के प्रारम्भ में रचे एक महावीर स्तवन का विवरण जैन गुर्जर कवियों भाग - १ पृष्ठ ३३ में छपा है । उसमें यान विहार का अन्त में उल्लेख है जिसे श्री देसाई ने उज्जैन में बताया है । पर उद्धरित पदों में मालव या उज्जैन का कहीं उल्लेख नहीं है । कवि का नाम भाव सुन्दर बतलाया है वह भी संदिग्ध है । क्योंकि वहाँ इस नाम का दूसरा अर्थ भी हो सकता है । प्रारम्भ में सोमसुन्दर सूरि को स्मरण किया है अतः स्तवन प्राचीन है । अंतिम पद्य में यान विहार पाठ छपा है | देसाई ने ऊपर के विवरण में पान विहार दिया है । पता नहीं शुद्ध पाठ कौनसा है। उज्जैन में इस नाम का कौनसा विहार या मंदिर है - यह मुझे तो पता नहीं है । देसाई ने इसे उज्जैन में बताया है, इसका आधार अज्ञात है ।
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