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२७८ मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ
१७वीं शताब्दी के प्रारम्भ में पूनमगच्छ में एक मालवी ऋषि हो गये हैं। मालव प्रदेश में उत्पन्न होने के कारण ही उनका नाम 'मालवी ऋषि' पड़ गया। उनके जीवन से सम्बन्धित एक ऐतिहासिक घटना मालव इतिहास का एक आवृत पृष्ठ खोलती है । इसके सम्बन्ध में मेरा एक लेख पूर्व प्रकाशित हो चुका है।
सम्वत् १६१६ के भादवा मास की पंचमी को मालव ऋषि की सज्झाय रची गयी है जिसमें उक्त घटना का उल्लेख है । इस रचना के कुछ पद्य यहां उद्धृत किये जा रहे हैं।
मालवीय ऋषि महिमा वडुरे जे हुई संघ लेई देसि । मालवदेश महिय देवास ग्राम निधि जेहनी परसिद्धि जाणीइ ओ। तेहनउ देस-घणी ऋद्धि छाई जास धणी, सिल्लादी नरायव साणी ॥
१६वीं शताब्दी में मालवा के आजणोढ गांव के सोलंकी रावत पदमराय की पत्नी सीता के दो पुत्र हुए जिनमें ब्रह्मकुमार का जन्म सम्वत् १५६८ के मगसिर सुदि १५ गुरुवार को हुआ था। वे अपने बड़े भाई के साथ द्वारका तीर्थ की यात्रा करने को सम्वत १५७६ में गये। वहां से गिरनार जाने पर रंगमंडन मनि से दोनों भ दीक्षा ग्रहण की। उनमें से आगे चलकर ब्रह्ममुनि पार्श्वचन्द्र सूरि की परम्परा में विनयदेव सूरि नामक आचार्य बने । ये बहुत अच्छे कवि थे । सम्वत् १५६४ से १६३६ के बीच इन्होंने चार प्रत्येकबुद्ध चौपाई, सुधर्मा गच्छ परीक्षा, सुर्दशन सेठ चौपाई, नेमिनाथ विवाहला आदि बहुत से काव्य रचे । यद्यपि उन रचनाओं में रचना-स्थान का उल्लेख नहीं है पर ये ब्रह्ममूनि मालव के जैनेतर कुटुम्ब में जन्म लेकर जैन आचार बने । इसलिए इनका उल्लेख यहाँ कर देना आवश्यक समझा। इनकी जीवनी सम्बन्धी मनजी ऋषि रचित दो रचनायें प्राप्त हैं। इनमें से प्रथम रचना विजयदेव सूरि 'विवाहलो' की कुछ पंक्तियाँ नीचे दी जा रही हैं।
मालव देश सोहामणो, गाम नगर पुर ढाम । श्रावक वसइ व्यवहारियाए, लिइ जिणवर नूं नाम ॥१४॥ आजणोठ नयर सोहामणं, घणा राउत ना ढाम। पदमो राउत तिहां वसइ, नारि सीता दे नाम ॥१५॥ सीता दे कुखि इं अवतर्या, धन ब्रह्मरिषि गुरुराय ।
भविक जीव प्रतिबोधता, आव्या मालव देश॥कि०॥१६॥ खोज करने पर और भी बहुत सी ऐसी रचनायें मिलेंगी जो मालव प्रदेश के साहित्य और इतिहास की जानकारी में अभिवृद्धि करेंगी।
मध्य प्रदेश सन्देश के ता० ५ अगस्त १९७२ के अंक में तेजसिंह गौड़ का प्राचीन मालव के जैन विद्वान और उनकी रचनायें नामक लेख प्रकाशित हुआ है । उसमें संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश साहित्य के रचयिता जैन विद्वानों का विवरण दिया गया है। अतः प्रस्तुत लेख अपूर्ण रह गया है। उसकी पूर्ति के लिए यह खोज पूर्ण लेख बड़े परिश्रम से तैयार करके प्रकाशित किया जा रहा है । इस सम्बन्ध में अभी और खोज की जानी आवश्यक है क्योंकि मालव प्रदेश से जैनधर्म का बहुत प्राचीन और घनिष्ठ सम्बन्ध रहा है । अतः वहां प्रचुर साहित्य रचा गया होगा । वास्तव में यह विषय एक
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