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शुभकामना एवं श्रद्धार्चन
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प्रवचनकार : जैनागमतत्त्वविशारद प्रवर्तक श्री हीरालालजी महाराज के गुणगान 0 दौलतसिंह तलेसरा, भादविया निवास, बाटेसर महादेव, उदयपुर
दोहा ते गुरु मेरे मन बसो, जे भव जलधि जहाज । आप तिरें पर तारहीं, से श्री मुनिराज ।।
कवित्त गुरु "हीरा" देव समान दिखे चतुर,
और ज्ञानवान, उत्तम निगाह वाले हैं। सूत्रों के जानकार, भाषण के शानदार,
संयम के उजले, क्रिया पालन वाले हैं ।। धर्म के हित काज, केई गांव परस आप,
पर उपकारी संत, शान्त स्वभाव वाले हैं । सब ही जनता के साथ, सनेह बरसावें आप, धन्य हीरालाल तूं, बापू "लक्ष्मी" के लाले हैं ।।
दोहा प्रेम "हीरा" न छपे, जां घट भया प्रकाश । दाबी - दूबी ना रहै, कस्तूरी की वास ।। काली-कलूटी-रात का, परिणाम प्रभात है। ज्यादा कड़ी गर्मी का, परि गाम बरसात है ।। कंकर और पत्थरों को, नजर अंदाज मत करो। देखो उन्हीं में से, निकलता "जवाहरात" है ।। जग, जश, लिधो-मोकलो, जर' सहलिधो जाण । जग-ने-वश किंकर किधो, अमृत जीवां बखाण ॥ आयु बढ़े कीर्ति बढ़े, जन - सन देत आशीष । "गुरु हीरा" कुशल रहें, सह य करे जगदीश ।।
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