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मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ श्री कस्तूरचन्दजी महाराज साहब के चरण-कमल में
समर्पित राजमल महेता बी. ए. साहित्यरत्न, ज्योतिष विशारद (कुशलगढ़) कस्तूरी सम हैं सुवासित, मालव रत्न सुखधाम हैं। वयोवृद्ध समता रसधारी, श्री को कोटि कोटि प्रणाम हैं । प्रियदर्शी, मधुमूर्ति, दर्शन सदा सुखकारी हैं। ज्योति पुंज ज्योतिष के ज्ञाता, महिमा जिनकी भारी हैं । सदा प्रसन्न सौम्यवदन, दर्शन की बलिहारी है। मंगलमूर्ति मंगलकारी, पुण्यवान उपकारी हैं। मालवरत्न सन्तपद अषण, संतन में सरताज हैं। दर्शन कर श्री चरण में, पुलकित आज समाज है। महेता के मनभावन पवन, सौम्याकृति सुखकारी हैं। कोटि कोटि वन्दन श्री चरण में, ज्योतिपुञ्ज धारी हैं ।
"द्वय मुनि अभिनन्दन"
शान्तिलाल मेहता द्वय मुनि को नतमस्तक हो साधारण सी भेंट है, स्वीकार करेंगे वंदना, अर्चना के ये शब्द हैं। द्वय मुनि, गरीबों अनाथों के सरताज हैं, द्वय मुनि को नतमस्तक हो साधारण सी भेंट है। सागर सम विशाल हृदय और कार्य क्षेत्र है, दया पालो कह दिया तो बेड़ा पार है। द्वय मुनि को नतमस्तव' हो साधारण सी भेंट है। अभागों के भाग्य है, पतितों के उद्धारक हैं, प्राणीमात्र के प्रति प्रेम और दया के प्रतिपालक हैं। द्वय मुनि को नतमस्तक हो साधारण सी भेंट है ।। त्याग और अपरिग्रह का पाठ सभी को पढ़ाते हैं, संगठन में लाने का एक ही महान लक्ष है। द्वय मुनि को नतमस्तक हो साधारण सी भेंट है ।। जो भी शरण में आता है उद्धार उसका करते हैं, तरण, तारण जहाज सम जीवन है। द्वय मुनि को नतमस्तक हो साधारण सी भेंट है ।।
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