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बैठे हैं भौतिक विज्ञान ने जो आराम की सामग्री के साथ में सर्वनाश करने वाले अरणुत्रम आदि अस्त्र प्रदान किये हैं, उससे सारा विश्व गहरी चिन्ता में डूब गया है । सर्वत्र भय और स्नेह शून्यता की प्रचण्ड पवन बह रही है । डॉ. इकबाल ने वर्तमान हिंसात्मक विकास की व्यंग्यात्मक शैली में इन शब्दों में समीक्षा की है
जान ही लेने की हिकमत में तरक्की देखी। मौत का रोकनेवाला कोई पैदा न हुआ ।
दार्शनिक बट्रेंड रसिल ने लिखा है जिस अरबम के फेंके जाने पर जापान का हिरोशिमा नगर नष्ट हो गया, आज उससे पच्चीस हजार गुने बम का निर्माण हो चुका है। उन्होंने अपनी पुस्तक Impact of Science on Sociology' में लिखा है Some eminent authorities including Eienstein hav epointed out that there is a danger of the extinction of all life on this planet (P. 126 ) - आइंस्टीन आदि कुछ प्रमुख विशेषज्ञों ने कहा है कि वर्तमान स्थिति इतनी भयावह है कि उससे इस भूमंडल पर विद्यमान जीवमात्र के विनाश की संभावना है ।
स्वर्गीय राष्ट्रपति डा. राजेन्द्रप्रसाद ने अपने एक वक्तव्य में कहा था, "जिन्होंने अहिंसा के मर्म को समझा है, वे ही इस अंधकार में कोई रास्ता निकाल सकते हैं। जैन धर्म ने संसार को अहिंसा की शिक्षा दी है । आज संसार को अहिंसा की आवश्यकता महसूस हो रही है । जैनियों का आज मनुष्य समाज के प्रति सबसे बड़ा कर्त्तव्य यह है कि वह कोई रास्ता ढूंढ़ निकालें ।"
भगवान महावीर ने संसार के दुःखों का मूल कारण हिंसात्मक भावना और आचरण को कहा है। उनका यह सूत्र अत्यन्त मार्मिक है, "हिसा प्रसूतानि सर्वदुःखानि
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समन्त दुःखों का मूल कारण हिंसा है ज्ञानार्णव में आचार्य शुभचंद्र ने कहा है
यत्किचित् संसारे शरीरिणां दुःख शोक भय बीजम् । दौर्भाग्यादि समस्तं तद्विसासंभवं ज्ञेयम् ।
इस संसार में जीवों के दुःख शोक एवं भय के बीज स्वरूप दुर्भाग्य आदि का दर्शन होता है, वह हिंसा से ही उत्पन्न समझना चाहिये ।
शुद्ध तथा स्वार्थी व्यक्ति "जीवो जीवस्यभक्षणम्” जीव का आहार दूसरा जीव है अथवा समर्थ को ही जीने का अधिकार है ( Survival of the fittest ) सोचा करता है । यथार्थ में उक्त बात पशु जगत से संबंध रखती है । मनुष्य पशु जगत से श्रेष्ठ है । वह विवेक और विचार शक्ति समलंकृत है । उसे अपनी दृष्टि को उदार बनाना चाहिए। संत वाणी है
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जैसे अपने प्रान हैं वैसे पर के प्रान । कैसे हरते दुष्ट जन बिना बैर पर प्रान ॥
सर्वोदय पथ :
सर्वज्ञ तीर्थंकर महावीर ने सर्वोदय मार्ग का उपदेश दिया है। उनका सर्वोदय बहुत व्यापक है। उसमें सर्व जीवों का, सर्वकालीन तथा सर्वांगीण उदय विद्यमान है। हिंसा की भावना पर निर्मित विकास या विलास का भवन शीघ्र धराशायी हो जाता है। भगवान महावीर के शिक्षण के विषय में आचार्य समन्तभद्र ने कहा है "सर्वापदा मन्तकरं निरन्तं सर्वोदयं तीर्थमिदं तदेव ||" युक्तमनुशासन ६१ आपका तीर्थ ( शासन ) समस्त संकटों का अन्त करनेवाला तथा स्वयं विनाश रहित सर्वोदय रूप है ।
अहिंसा की महत्ता :
भगवान की करुणामयी दृष्टि जीवमात्र के उत्थान की थी वे स्वार्थ पूर्ति के स्तर पर अहिंसाहिंसा का विश्लेषण नहीं करते थे। उनकी करुणामयी ।
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