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चन्द्रिका सर्व जगत को प्रकाश और आनंद प्रदान करती राधना द्वारा होती है । आचार्य अमृतचन्द्र ने कहा हैथी। अहिंसा में अपार शक्ति है। गांधीजी ने उसका "अमृतत्वहेतुभूतं परमहिंसा रसायनम्" । ७८ । आश्रय लेकर भारत को स्वाधीन बनाया। इससे अहिंसा अहिंसा द्वारा अमत पद, (परम निर्वाण) प्राप्त होता की महत्ता, शक्ति तधा उपयोगिता स्पष्ट हो गई है। है। यह श्रेष्ठ रसायन है। इसमें मधुरता का रस भगवान ने कहा है "सत्थस्स सत्थं आC असंस्थस्स भरा है तथा इससे आत्मा की प्रसुप्त अनंत दिव्य सत्यं णत्थि" शस्त्र के मुकाबले में बड़ा शस्त्र बन शक्तिया विकसित हो जाती हैं। सकता है किन्तु अशस्त्र अर्थात् अहिंसा से बड़ा कोई दूसरा शस्त्र नहीं है । शस्त्र प्रयोग शत्रु का नाश करता ईश्वरभक्त भगवान को करुणा का सागर कहा है; वह शत्रुता का नाश नहीं करता है । अशोक ने करता है, इसलिए जिस व्यक्ति में जितनी मात्रा में कलिंग पर चढ़ाई कर उसे हराया था, किन्तु कुछ करुणा का सदभाव रहेगा उसमें उतनी मात्रा में दिव्यता समय बाद कलिंग सम्राट महामेघवाहन खारवेल ने की उपलब्धि रहेगी। शेक्सपियर ने कहा है Mercy मगध को जीतकर कलिंग को जयश्री प्रदान की। is an attribute to God Himself" दया ईश्वर अहिंसात्मक हथियार का चमत्कार यह है कि शत्रु का का ही गुण है। नाश न कर शत्रुता का नाश करता है। गांधीजी ने अंग्रेजी शासन को भारत से समाप्त कर दिया, किन्तु .
आत्मबल भारत और अग्रेजों के बीच दुश्मनी का विष नहीं पनपा तथा उनके साथ मैत्री की दृष्टि विकसित हई।
अहिंसा की साधना के लिए आत्मबल तथा
वासनाओं पर विजय आवश्यक है। इसमें साधक यह बात स्मरण योग्य है कि वही अहिंसा शक्ति
को अधोगामिनी प्रबत्तियों को उर्ध्वगामिनी बनाने शाली है, जिस पर माया या कपटाचार की छाया नहीं
का सकचा पुरुषार्थ और पराक्रम करना पड़ता है। साधारणतया जल का अधोगमन होता है। नदी
को निम्नगा इससे कहते हैं, कि उसका पानी सदा अहिंसा अमर जीवन प्रदान करती है। जिस अहिंसा- नीची भूमि की ओर प्रवाहित होता है, उस जल को मयी साधना के द्वारा यह साधक अमतत्व तथा परम ऊँचाई पर पहुँचाने के लिए विशेष श्रम और उद्योग ब्रह्म पद को प्राप्त कर सकता है, उसके द्वारा लौकिक जरूरी हैं, इसी प्रकार आत्मा को अहिंसा के उदात्त पथ तथा मानसिक शांति को प्राप्त करना कठिन नहीं है। पर पहुंचाने के लिए विशेष प्रयत्न तथा आत्मबल 'हिंसा' का पर्यायवाची शब्द 'मृत्यु' है अतः हिसा का बांछनीय है । काका कालेलकर ने कहा है, "बिना परिनिषेधवाचक 'अहिंसा' का पर्यायवाची 'अमत्यू' होगा। श्रम किए हम अहिंसक नहीं बन सकते । अहिंसा की उपनिषद में मैत्रेयी ने याज्ञवल्क्य में कहा था, आज साधना बड़ी कठिन है। एक ओर पोद्गलिक भाव तपोवन को अमृतत्व के लिए प्रयाण कर रहे हैं, तो खींचतान करता है, दूसरी ओर आत्मा सचेत बनता है। मैं धनादि सामग्री को लेकर क्या करूगी, जबकि उससे दूसरों का हित हृदय में रहने से आत्मा धार्मिक श्रद्धाअमृतत्व की उपलब्धि नहीं होती है। "किमहं तेन बान बनता है। आज की मानवता को युद्ध के दाबानल कूर्माम् मेनाहं नामता स्याम"--उस अमत पद (Life से मुक्त करने का एक मात्र उपाय भगवान महावीर immortal) की प्राप्ति अहिंसा की श्रेष्ठ समा- की अहिंसा ही है।"
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