________________
प्रमाण--
गेहणइ वत्थुसहावं, अविरुद्ध सम्मरूवं जं जाणं । भणियं खु तं पमाणं, पच्चक्खपरोक्खभेएहिं ।।
जो ज्ञान वस्तु-स्वभाव को-यथार्थ स्वरूप कोसम्यक रूप से जानता है, उसे प्रमाण कहते हैं। इसके दो भेद हैं-प्रत्यक्ष और परोक्ष।
पुदगल
सद्दडन्धयार उज्जोओ, पहा छायाऽऽतवे इवा। वष्ण रस गन्ध फासा पुग्गलाणं तु लक्खणं ।।
शब्द, अन्धकार, उद्योत, प्रभा, छाया, आतष, वर्ण, रस, गन्ध और स्पर्श ये पुदगल के लक्षण हैं ।
भय
सम्मविट्ठी जीवा, णिस्संका होति णिब्भया तेण । सत्तभयविप्पमुक्का, जम्हा तम्हा दु णिस्संका ॥
सम्यग्दृष्टि जीव नि:शंक होते हैं और इसी कारण निर्भय भी होते हैं । वे सात प्रकार के भयों--इस लोक का भय, परलोक भय, अरक्षा मय, अगुप्ति भय, मृत्यु भय, वेदना भय और अकस्मात भय--से रहित होते हैं, इसीलिये नि:शंक होते हैं। (अर्थात् निःशंकता और निर्भयता दोनों एक साथ रहने वाले गुण हैं।)
भाषा
असच्चमोसं सच्चं च अणवज्जमकक्कस । समुप्पेहमसंदिद्ध गिर भासेज्ज पन्नवे ॥
बुद्धिमान को ऐसी भाषा बोलनी चाहिये जो व्यवहार में सत्य हो, तथा निश्चय में भी सत्य हो निरवद्य हो, अकर्कश-प्रिय हो, हितकारी हो तथा असंदिग्ध हो।
मार्दव
कुलरूवजादिवुद्धिसु, तवसुदसीलेसु गारवं किंचि । जो णवि कुव्वदि समणो, मद्दवधम्म हवे तस्स ॥
जो श्रमण कुल, रूप, जाति, ज्ञान, तप, श्रुत और शील का तनिक भी गर्व नहीं करता, उसके मार्दवधर्म होता है।
मोक्षमार्ग
धम्मादी सद्दहणं, सम्मत्तं णाणभगपुव्वगदं । चिटठा तवंसि चरिया, बवहारो मोक्खमग्गो त्ति ।।
छह धर्म (छह द्रव्य) तथा तत्वार्थ आदि का श्रद्धान करना सम्यग्दर्शन है। अंगों और पूर्वो का ज्ञान सम्यग्ज्ञान है । तप में प्रयत्नशीलता सम्यकचारित्र है। यह व्यवहार मोक्ष मार्ग है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org