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उत्तमखममद्दवज्जव-सच्चसउच्चं च संजमं चेव । तवचागमकिंचण्हं, बम्ह इदि दसविहो धम्मो ।।
उत्तम क्षमा, उत्तम मार्दव, उत्तम आर्जव, उत्तम सत्य, उत्तम शौच, उत्तम संयम, उत्तम तप, उत्तम त्याग, उत्तम आकिंचन्य तथा उत्तम ब्रह्मचर्य-ये दस धर्म हैं।
ध्यान
जं थिरमज्झवसाणं, तं झाणं जं चलंतयं चित्तं । तं होज्ज भावणा वा, अणुपेहा वा अहव चिंता ।।
स्थिर अध्यवसान अर्थात् मानसिक एकाग्रता ही ध्यान है। और जो चित्त की चंचलता है, उसके तीन रूप हैं-भावना, अनुप्रेक्षा और चिन्ता।
परमाणुअंतादिमज्झहीणं, अपदेसं इदि एहिं णहु गेज्झं । जं दव्वं अविभत्तं, त परमाणं कहंति जिणा ।।
जो आदि मध्य और अन्त से रहित है, जो केवल एक प्रदेशी है जिसके दो आदि प्रदेश नहीं हैं और जिसे इन्द्रियों द्वारा ग्रहण नहीं किया जा सकता, वह विभाग विहीन द्रव्य परमाणु है।
परमात्मा
जीवा हवंति तिविहा, वहिरप्पा तह य अंतरप्पा य । परमप्पा वि य दुविहा, अरहंता तह य सिद्धा य ।।
जीव आत्मा में तीन प्रकार का है:-बहिरात्मा, अन्तरात्मा और परमात्मा। परमात्मा के दो प्रकार हैं:--अहंत और सिद्ध ।
अक्खाणि वहिरप्पा, अंतरप्पा हु अप्पसंकप्पो । कम्मकलंक-विमुक्को, परमप्पा भण्णए देवो ।।
इन्द्रिय-समूह को आत्मा के रूप में स्वीकार करने वाला वहिरात्मा है । आत्मसंकल्प-देह से भिन्न आत्मा को स्वीकार करनेवाला अन्तरात्मा है। कर्म-कलंक से विभुक्त आत्मा परमात्मा है।
परिग्रहणन सो परिग्गहो वुत्तो, नाय पुसैण ताइणा । मुच्छा परिग्गहो वुत्तो, इइ वुत्तं महेसिणा।।
ज्ञात पुत्र भगवान महावीर ने (वस्तुगत) परिग्रह को परिग्रह नहीं कहा है । उन महर्षि ने मूर्छा को ही परिग्रह कहां है।
पर्यायगुणाणमासओ दव्वं, एगदव्वस्सिया गुणा । लक्खणं पज्जवाणं तु, उभओ अस्सिया भवे ।।
द्रव्य, गुणों का आश्रय या आधार है । जो एक द्रव्य में आश्रय' रहते हैं, वे गुण हैं। पर्यायों का लक्षण द्रव्य या गुण दोनों के आश्रित रहना है।
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